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________________ समय-निर्णय । जिसे उन्होंने उक्त लेविस राइस साहबके ग्रंथों और 'कर्णाटककविचरिते' के आधारपर लिखा है, समंतभद्रके अस्तित्वकालविषयमें सिर्फ इतना ही सूचित किया है कि जैनियोंकी रिवायत (लोककथा) के अनुसार वे दूसरी शताब्दीके विद्वानोंमेंसे हैं * । ३-श्रीयुत एम० एस० रामस्वामी आय्यंगर, एम० ए० ने, अपनी 'स्टडीज इन साउथ इन्डियन जैनिज्म' नामकी पुस्तकमें, लिखा है कि " समन्तभद्र उन प्रख्यात दिगम्बर (जैन ) लेखकोंकी श्रेणीमें सबसे प्रथम थे जिन्होंने प्राचीन राष्ट्रकूट राजाओंके समयमें महान् प्राधान्य प्राप्त किया है ।" इससे स्पष्ट है कि आपने समन्तभद्रको प्राचीन राष्ट्र. कूटोंके समकालीन और उनके राज्यमें विशेषरूपसे लब्धख्यानि माना है । परन्तु प्राचीन राष्ट्रकूट राजाओं से कौनसे राजाके समयमें समंतभद्र हुए हैं, यह कुछ नहीं लिखा और न यही सूचित किया कि आपका यह सब कथन किस आधारपर अवलम्बित है, जिससे उसपर विशेष विचारको अवसर मिलता। आपने प्राचीन राष्ट्रकूट राजा. ओके नाम भी नहीं दिये और न यही प्रकट किया कि उनका काल कबसे कबतक रहा है। राष्ट्रकूटोंके जिस कालका आपने उल्लेख किया है और जिसके साथमें 'प्राचीन' ( अली ) विशेषणका भी कोई प्रयोग नहीं किया गया वह ईसवी सन् ७५० से प्रारंभ होकर ९७३ पर समाप्त * Sainanta-bhadra is by Jain tradition placed in the second century. 9 This Samantabhadra was the first of a series of celebrated Digambara writers who acquired considerable predominance, in the early Rashtrakut period.
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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