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________________ समय-निर्णय। हमारी रायमें, राइस साहबका यह अनुमान निरापद अथवा युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता । हो सकता है कि समन्तभद्र सिंहनन्दिसे पहले ही हुए हों, और ईसाकी पहली शताब्दिके विद्वान् हों, परंतु जिस आधार पर राइस साहबने इस अनुमानकी सृष्टि की है वह सुदृढ नहीं है; उसके लिये सबसे पहले, यह सिद्ध होनेकी बड़ी जरूरत है कि उक्त शिलालेखमें जितने भी गुरुओंका उल्लेख है वह सब कालक्रमको लिये हुए है, अथवा उसमें सिंहनन्दिका समंतभद्रके बाद या उनके वंशमें होना लिखा है। परंतु ऐसा सिद्ध नहीं होता-न तो शिलालेख ही उस प्रकृतिका जान पड़ता है और न उसमें 'ततः' या 'तदन्वये' आदि शब्दोंके द्वारा सिंहनन्दिका बादमें होना सूचित किया है उसमें कितने ही गुरुओका स्मरण क्रमरहित आगे पीछे भी पाया जाता है । उदाहरणके लिये 'पत्रिकेसरी' विद्यानंदको लीजिये, जिन्होंने अकलंकदेवकी ' अष्टशती' को अपनी 'अष्टसहस्री' द्वारा पुष्ट किया है और जो विक्रमकी प्राय: ९ वीं शताब्दिके विद्वान् हैं । इसका स्मरण अकलंकदेवसे पहले ही नहीं, बल्कि 'श्रीवद्धदेव' से भी पहले किया गया है। श्रीवर्द्धदेवकी स्तुति 'दंडी' नामक कविने भी की है, जो ईसाकी छठी शताब्दीका विद्वान् है और उसकी might, in connection with the remarks made below, be placed in the 1st or 2nd century A. D................ There is accordingly no reason why Sinha nandi should not be placed at the end of the 2nd century A. D. १ पात्रकेसरी और विद्यानंद दोनों एक ही व्यक्ति ये इसके लिये देखो 'सम्य. क्यप्रकाश' ग्रंथ, तथा वादिचन्द्रसूरिका 'झानसूर्योदय' नाटक अथवा 'जैनहितैषी भाग ९, अंक ९, पृ. ४३९-४४०। सम्यत्वप्रकाशके निन्न वाक्यसे ही दोनोंका एक व्यकि होना पाया जाता है-"तथा सोकवार्तिके विद्यानन्यपरनामपानकेसरिस्वामिना पदुकं तब लिस्पते-"
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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