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________________ स्वामी समन्तभद्र। नेमिदत्तके इस कथनमें सबसे पहले यह बात कुछ जीको नहीं लगती कि कांची ' जैसी राजधानीमें अथवा और भी बड़े बड़े नगरों, शहरों तथा दूसरी राजधानियोंमें भस्मक व्याधिको शांत करने योग्य भोजनका उस समय अभाव रहा हो और इस लिये समंतभद्रको सुदूर दक्षिणसे सुदूर उत्तर तक हजारों मीलकी यात्रा करनी पड़ी हो । उस समय दक्षिणमें ही बहुतसी ऐसी दानशालाएँ थी जिनमें साधुओंको भरपेट भोजन मिलता था, और अगणित ऐसे शिवालय थे जिनमें इसी प्रकारसे शिवको भोग लगाया जाता था और इस लिये जो घटना काशी (बनारस ) में घटी वह वहाँ भी घट सकती थी। ऐसी हालतमें, इन सब संस्थाओंसे यथेष्ट लाभ न उठाकर, सुदूर उत्तरमें काशीतक भोजनके लिये भ्रमण करना कुछ समझमें नहीं आता। कथामें भी यथेष्ट भोजनके न मिलनेका कोई विशिष्ट कारण नहीं बतलाया गया सामान्यरूपसे प्रेरणासे, दोनों कथाकोशोंमें दी हुई समन्तभद्रकी कथाका परस्पर मिलान किया है और उसे प्रायः समान पाया है । आप लिखते है-"दोनोंमें कोई विशेष फर्क नहीं है। नेमिदत्तकी कथा प्रभाचन्द्रकी गद्यकथाका प्रायः पूर्ण पद्यानुवाद है। पादपूर्ति आदिके लिये उसमें कहीं कहीं थोड़े बहुत शब्द-विशेषण अव्यय आदिअवश्य बढ़ा दिये गये है। नेमिदत्तद्वारा लिखित कथाके ११ वें श्लोकमें 'पुण्ड्रेन्द्र नगरे' लिखा है, परन्तु गद्यकथामें 'पुण्ड्रनगरे' और 'वन्दक-लोकानां स्थाने' की जगह 'वन्दकानां बृहद्विहारे' पाठ दिया है। १२ वें पद्यके 'बौद्धलिंगकं की जगह 'वंदकलिंग' पाया जाता है। शायद 'वंदक' वौद्धका पयायशब्द हो। 'कांच्या नमाटकोऽहं' आदि पद्योंका पाठ ज्योंका त्यों है। उसमें 'पुण्ड्रोन्द्रे' की जगह 'पुण्द्रोण्ट्रे' 'ढक्कविषये' की जगह 'ठक्कविषये' और 'वैदिशे' की जगह 'वैदुषे' इस तरह नाममात्रका अन्तर दीख पड़ता है। ऐसी हालतमें, नेमिदत्तकी कथाके इस सारांशको प्रभाचंद्रकी कथाका भी सारांश समझना चाहिये और इस पर होनेवाले विवेचनादिको उस पर भी यथासंभव लगा लेना चाहिये।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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