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________________ ७४ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि MNNNNNo. m e ३ घर ५ पटण ४ घर २ वारि (वाड़) ५ घर ३ भागलपुर ६ घर १ वांगर मऊ ७ घर ४ जलालपुर ८ घर २० सहारणपुर । गंगापारपि केपि । ६ घर २. अमदावादे माजनई सर्व घर १०० इससे पहिले के शिलालेखों और खरतरगच्छ की वृहत् गुर्वावली में दिल्ली, जवणपुर (जौनपुर), डालामऊ, नागौर आदि स्थानों में भी इस जाति के प्रतिष्ठित धनीमानी श्रावकों के निवास करने का उल्लेख पाया जाता है। विहार तो इनका प्रमुख निवासस्थान था. जिसका परिचायक वहाँ अव भी "महत्तियाण मुहा" नाम से प्रसिद्ध एक मुहल्ला है और वहां उन्हीं के वनाये हुए जिनालय और धर्मशाला विद्यमान हैं। चौदहवीं शताब्दि से सतरहवीं शताब्दि पर्यंत मंत्रिदलीय लोगों की बड़ी भारी जाहोजलाली ज्ञात होती है। वे केवल धनवान ही नहीं परन्तु बड़े-बड़े सत्ताधीश एवं राजमान्य व्यक्ति थे। अपने उपगारी खरतर-गच्छाचार्यों की सेवा. तीर्थयात्रा संघभक्ति, और अर्हन्तभक्ति में इस जातिवालों ने लाखों रुपये खुले हाथ से व्यय कर अपनी चपला लक्ष्मी का सदुपयोग किया था।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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