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________________ व्यवस्था-शिक्षा-कुलकर ........... साहणं समणीगणस्सय सया सड्दाण सड्ढीण य, सिक्खत्थं जिणचंदररिपयवीसंसाहगं सवहा ॥७३॥ मणेहोफ्तमागममयं गीतार्थशास्त्रोचितं । फुर्वद गुणहेतु नियतिकरं भव्याना सर्वेषां यत् ।। माधनां श्रमणीगणम्य च सदा श्राद्धाना श्रादीनां च । शिक्षार्थ जिनचन्द्रसूरिपदवीसंमाधकं सर्वथा ||७|| अर्थ-यहाँ सक्षेप मे आगमममत और गीताधों के मिलान्त के अनुहल गुण कारण को प्रकटाने वाला, मय भय्यान्माओ को निति करने वाला साधुमानो गमुदाय को और धावन धाविका गमूह को गिक्षा देने के लिये नर्मदा श्रीजिननन्द्रमरि (तीर्थगर और आना) पद को साधनयाला विषय कहा। गमे जणचटरि" इन पद ने फत्ता ने स्वनाम भी सूचित एयं जिणदचाणं करेइ जो कारवेइ मन्नेछ । सो सव्वदुहाण लहुं जलंजलिं देह सिव मेह ॥७॥ पता जिनहत्तामा गति य कारापयति मानयति । स सम्मेभ्यो लघु जलासलिं ददाति शिवमेति ॥७४|| --इम प्रारमिन भगवान को मार निमार गुलंग की जो आनग्नामे Tram, मानता गह सब नुको स्टाट स्त र मौर में पना। माधु-नान्यो-श्रावक-श्राविका शिक्षा गुल कम्
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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