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________________ की अवहेलना करने की सिफारिश करते हैं पर हमारा नम्र निवेदन तो इतना ही है कि, लोग पूजा करें-दिन दूनी करें पर साथ ही इस बात का ज्ञान भी प्राप्त करने का प्रयास करें कि हमार आराध्य देवों ने, हमारे पूज्यवर आचार्यों ने संसार को जो अतुलनीय बान दिया है वह क्या है उन्होंने संसार के लिये क्या क्या रन छोड़ है। आशा है समाज हमारे इस निवेदन पर गंभीरता से विचार करेगा। आज 'बंगला साहित्य' इतनी समृद्धि पर इसीलिये है कि बंगाली जाति ने उसको गौरव के साथ देखा है। अपने लेखकों, साहित्य-स्रष्टाओं को उसने उच्च आसन पर बैठाया है। उसने अपने साहित्य की भित्ति पर अपनी जाति का निर्माण किया है। पर हमारा समाज साहित्य से एक दम उदासीन है। वह पूजा करता है, पर यह नहीं जानता कि वह क्यों और किस प्रकार के महान् पुरुष के महान आदर्श की अर्चना करता है। यह स्थिति दुःखद है और उज्ज्वल भविष्य की सूचना नहीं देती। हमने इसके पूर्व जैन साहित्य के १० ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं। जिनमे दो तो दादाजी आचार्यों के जीवनचरित्र ही है और एक ऐतिहासिक जैन काव्यों का वृहत् संग्रह है। यदि जैन समाज इसको समुचित आदर के साथ स्वीकार कर लेता तो दिन पर दिन इस प्रकार के ग्रन्थों को शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित करने का प्रयास किया जाता। भारतीय विद्वानों ने तो इन ग्रन्थों का बहुत ही आदर किया है। भारतीय पत्रों ने इनकी
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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