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________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रमनि PAJ मा कुउ जइ तिगिच्छं, अहिया सेऊण जइ तरह मम्मं । अहियासितम्स पुणो, जड़ जागा न हायन्ति ।। ५४ ॥ मा करोतु यदि चिकिन्मां अध्यासोढुं यदि तरति सम्यक् । अध्यामहतः पुनर्यदि योगा न हीयन्नं ॥५४॥ अर्थ-विकिा मन बगे यदि भली प्रकार में सहन करना सत्य है। तो। यदि कटोगे मानिने मन कग्नं हुए गंग-मन वचन और गया नट न होने हो तो। कन्तारोह मद्धाणा उम (2) गेलन्न माइ कर्जमु । सव्वायरेण जयणाए कुणइ ज साहु करणिज्जं ॥ ५५ ॥ कान्ताररोह विकटाध्वनि ग्लान्यादि-कार्यपु । सादरण यतनया करोति यन्साघुकरणीयम् ।। 12॥ अर्थ-भयर अटो आदि को पार करते हुए विकट मार्ग के आने पर या रोग आदि कार्यों में जो करने योग्य कान होता है उसको माधु माटर से बदना पूर्व करता है। . जावज्जीवं गुरुगो मुद्धममुद्धेण वावि कायव्वं । वसहे बारसवासा अट्ठारस भिक्षुणी मासा ॥ ५६ ।। यावनीवं गुरो. शुद्धाशुद्धेण वापि कर्त्तव्यम् । वृपमस्य द्वादशवर्ष अष्टादश भिक्षो मासान् ।। ५६।।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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