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________________ AAN मणिधारी श्रीजिनचन्द्रमुरि एवं सुबहुधा सूत्रे प्रोक्तमस्ति यथास्थितम् । तथापवादतश्चापि नानासूत्रेषु दर्शितम् ।। ४ ।। अर्थ-इस प्रकार सत्र में ययास्थित उत्सर्ग मार्ग बहुत प्रकार से कहा हुआ है। तथा अपवाट भी नाना रूप से सूत्रों में दर्शित है। अच्चंतियाववाएणं कि पि कत्थइ जंपियं । गीयत्यो तादिसं पप्य, कारणं तं करेइ य ॥ ५० ॥ आयन्तिकापवादेन किमपि कुत्रचिन्नल्पितम् । गीतार्थस्तादृशं प्राप्य कारणं तत् करोति च ॥ ५० ॥ अर्थ-कहीं • आत्यतिक अपवाद से भी कुछ कहा हुआ होता है, उसको ऐसे ही कारण के प्राप्त होने पर गीतार्थ आचरते हैं। तंकरेंतो तहा सो वि मज्जिज्जा तो भवण्णवे । एसा आणा जिणाणंतु तं कुणंतो तमुत्तरे ॥ ५१ ॥ तजुर्वन् तथा सोऽपि मज्जेन्न भवार्णवे । एपाना जिनानां तु तां कुर्वन् तमुत्तीर्यात् ।। ५१ ।। अर्थ-वे गीतार्य टम-अपवाद को आचरते हुए भवसमुद्र में नहीं दुबते प्रत्युत यह जिनेश्वरी को आना है उसको करते हुए उस संसार सागर में पार उतर जाते हैं।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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