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________________ - ram ramarrrrrrrrrrrronarrrrrrrrrn. मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि शान्ति जिनालय के शिखर पर स्वर्ण दण्ड, कलश और ध्वजा को महा महोत्सव पूर्वक चढ़ाया गया। साध्वी हेमदेवी गणिनी को इन्होंने प्रवर्तिनी पद से विभूपित किया। वहां से विहार कर क्रमशः मथुरा पधारे । वहा की यात्रा कर सं० १२१७ के फाल्गुन शुक्ला ? १० के दिन पूर्णदेव २ गणि, जिनरथ, वीरभद्र, वीरनय, जगहित, जयशील जिनभद्र और नरपति (श्री जिनपतिसूरि ) को भीमपल्ली : के श्री वीरजिनालय में दीक्षा दी गुर्वावली में श्री जिनपतिसुरिजी के नेतृत्व में स० १२४४ में एक संघ निकला उसमे त्रिभुवनगिरि से यशोभद्राचार्य के समीप अनेकान्त जयपताका, न्यायावतार आदि अन्यों के पढ़ने वाले शीलसागर और सोमदेव स्थानीय सघ के साथ आकर पूज्यश्री के आज्ञानुसार सघ में सम्मिलित होने का उल्लेख है। १ हमारे सम्पादित ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह के अन्तर्गत श्री जिनपतिसूरि के गीतद्वय में दीक्षा स० १२१८ फाल्गुण कृष्ण १० लिखा है पर गुर्वावली में दो स्थानों में उपर्युक्त संवत् तिथि मिलने के कारण व प्रस्तुत जीवनी का मुख्य आधार गुर्वावली होने के कारण हमने भी उसी को स्थान दिया है। २ स० १२४५ मे लवणखेटक स्थान में श्रीजिनपतिसूरिजी ने इनको वाचनाचार्य पद से विभूषित किया था। ३ आपका सक्षिप्त परिचय हमारे 'ऐतिहासिक जैन काव्य सग्रह' के सार भाग पृष्ठ ९ में देखना चाहिए। गुर्वावलो मे आपका जीवन अति विस्तार से मिलता है, जिसे स्वतन्त्र रूप या गुर्वावली के अनुवाद के रूप में प्रकाशित किया जायगा। ४ वर्तमान भीलड़ी पालनपुर एजेन्सी मे डीसा ग्राम से ८ कोश
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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