SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रमुरि rana... अजमेर पधार और वहीं सं० १२०३ के मिती फाल्गुन शुक्लाह के दिन श्रीपार्श्वनाथ विविचत्य मे हमारे चरित्रनायक की दीक्षा हुई। आप असाधारण बुद्धिशाली और स्मरण शक्ति सम्पन्न थे, दो वर्ष के विद्याध्ययन मे ही आपकी प्रतिभा चमक उठी। सभी लोग इस लघुवयम्क सरस्वतीपुत्र मुनि की मेधा एव सूरिजी की परख की भूरि भूरि प्रशंमा करने लगे। आचार्य पद सं० १२०५ । के मिती वैशाख शुक्ला को विक्रमपुर के श्री महावीर जिनालय मे श्री जिनदत्तमरिजी ने स्वहस्त कमल __१० श्री क्षमाक्यागजी की पट्टावली में स० १२११ लिखा है लेकिन वह ठीक नहीं जात होता । म० १३१० दीवाली के दिन प्रहारनपुर में विरचित अभयनिलकोपाध्याय के द्वयाश्रयकाव्य उत्ति की प्रगस्ति में लिखा हैनन्पट्टाचलचूलिकाचल्मल चक्रेऽप्वोऽपि म श्रीमान्द्रो जिनचन्द्रसूरि सुगुरु कण्ठीर वा भेपिम य लोगेत्तररूपसपदमपेन्य स्व पुलिन्दोपम मन्वानोऽनुदधौ स्मरस्तदुचिताथाप गरान्यं वच ॥en इसी मितो में स्तम्भतीयं मे २० श्रीचन्द्रतिलक रचित श्री अभयकुमार चरित्र में भी ९ वर्ष के अवस्था में सुरिपट मिलने का उल्लेख मिलता है। श्रीजिनपालोपाध्याय ने गुर्वावली में भी यही बात लिखी है। पिछली अन्य पट्टावलियों में भी सूरिपद का समय स० १२०५ ही लिखा है।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy