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________________ (१२) Anmmmmw nahma-MANRAN - 8. अथ श्री संघपट्टका - पोताना दोषने ढांकवाने अर्थे धर्मरहित पुरुषोने पण प्रशंसा करे. टीकाः-श्रत एवंविधा जिनोतिप्रत्यर्थिनमेव मार्ग प्र. वयंति ।। अथ नास्वतीव दीप्यमाने पारमेश्वरे पथि कुत एवंविधपथप्रथनस्य तमस श्वावकाशः ॥ तत्राद ॥ जगति लोके विरखता स्तोकतां श्रुष्पजनान्युपगमनीयतां याति पाप्नुवति सति ॥ कस्मिन् ॥ जिनेमार्गे जगवत्प्रणीते शुझे प्रतिश्रोतसि पथि ॥ अर्थः-एहीज कारण माटे ए प्रकारनो जिनेश्वर जगवंतना वचनना शत्रुरूपज मार्ग तेने विस्तारे . ते उपर आशंका करे , जे सूर्यनी पेठे देदीप्यमान परमात्माना मार्गने विषे शाथी ए प्र. कारना मार्गना विस्तार रूपी अंधकारनो प्रवेश भयो ? तो कहे जे के जगत्मां जिने जगवते कहेलो ने संसार मार्गथी उलटो एवो शुध्ध मार्ग विरलपणाने एटले थोमापणाने पामे बते जावार्थ-लोकमांश्रल्प पुरुषज शुध्धमार्गने पामवाथी उत्सूत्र मार्ग विस्तार पाम्यो. टीकाः-कस्मादेतदित्यत आह ॥ प्रोत्सर्पद्नस्मेत्यादि ॥ . प्रोत्सlन अगवडीमहावीरमुहिसमये तजन्मराशिसंक्रांत्या तत्पक्षसंघस्य बाधाविधायित्वात् प्रोड्नमाणो नस्मराशिनामा मंगालादिवत्रो ग्रहस्तस्य सखा मित्रं राजादित्वादन्। ततश्च प्रोत्सप्पलस्मराशिग्रहसखं यदशमाश्चर्यमसंयक्तिपूजाख्यं ॥ अर्थः-शाथी एम थयुं ? तो त्यां कहे जे नगवान श्री महावीरस्वामि मुक्तं गया ते समये उदय पाम्यो, ने तेमनी जन्मराशीने संक्रमण थयो ए माटे. तेम महावीर स्वामीना पक्षपाती
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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