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________________ - अथ श्री संघपट्टका - नहीं, ते माटे ते पुरुषने तत्वनो निश्चय क्यांधीज होय ? ॥७॥ टीकाः-तथा नीतिदिति ॥ सदाचारपरायणः ॥ ततो हि सर्वेपि साहाय्यं नजते । तछिपरीतस्य च वैपरीत्यम् ॥ अर्थः-वली ते श्रोता पुरुष केवो होय तो के नीतिनो धारण करनार एटले सदाचारने विषे तत्पर, सदाचारवालाने निश्चे सर्वे पण सहाय करे ने अने असत् आचरण करनारनुं विपरीतपणुं करे ॥ टीका-॥ यमुक्तं ॥ यांति न्यायप्रवृत्तस्य तिर्यचोपि सहायताम् ॥ अपंथानं तु गच्छन्तं सोदरोपि विमुंचतीति ॥ ए॥ - अर्थः॥ शास्त्रमा काडे जे न्याय मार्गे चालनारनी सहाय तिर्यच एटले पशु पक्षी पण करे डे, ने उन्मार्गे चालनार पुरुषनो सोदर (ना) पण त्याग करे ॥ ९॥ टीका तथा स्थैर्वी ति॥ स्थैर्य कार्यारंने अनौत्सुक्यं तछान् ॥ उत्सुका हि राजस्यन कार्यमारजमाणाः शास्तारमप्युटजयंति ॥ अर्थः वली ते श्रोता पुरुष केवा होय तो, स्थैर्यो केहेतां कार्यना आरंजने विषे स्थिरतावाला, अने जे स्थिरतावाला नथी ने कार्यनो आरंज करे ते पुरुष पोतानो जे शिक्षक तेने पण वेग पमामे तेमां शुं कहे ? टीकाः-यदुक्तं ॥ अस्थिरा: स्वैरिणो नूनं दोनयंति प्रभूनपि ॥ श्रचलानाकुलारना युगांतपर्वता श्वेति ॥ अर्थः-जे माटे शास्त्रमा का जे अस्थिर होय ने स्वेता
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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