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________________ - अथ श्री संघपट्टका - (६७७) mawwwwwwwnnn amaraanwunnmanmaan Amanna मनी एवा गुणी पुरुषोनां पण नाना प्रकारना चित्तने रंजन करे ले ए मोटें आश्चर्य ॥२॥ टीकाः-॥ माधुर्यशार्करिताकरयारयाद्यं, पीयुषवर्षमिव तर्कगिरा किरतं ॥ विद्यानुरक्तवनिताजनितास्यलास्यं, हित्वाऽपरत्र न मेना विरुषामरस्त ॥३॥ अर्थः-मधुरतावमे साकरनी मीठाशना गर्वने काका करती एटले अति मीठी एवी तर्कवाणी व अमृतरसने ढोळताज होयने शुं ? अने सरस्वती रूप अनुरागिणी स्त्रीये नत्पन्न करीले मुखचातुर्यता ते जेनी एवा जे जिनववनसूरी तेनो त्याग करी विछान लोंकनी मन बीजे ठेकाणे न रमतां हवां ।। ३॥ टीका:-॥ जज्ञे श्रीजिनदत्तयत्यधिपतिः शिष्यस्ततस्त स्यय, सिद्धांताहि विधिपारतंत्र्यविषया जिख्यामनिख्यान्वितः।। श्रासाद्य त्रिपदीं विधुर्बलिमिव व्यध्वं वृषध्वंसनं ॥ चिछेद प्रतिपंथिनं सुमनसां व्यक्तक्रमप्रक्रमः॥४॥ अर्थः-त्यार पनी ते जिन वनसूरिना शिष्य शोजाये सहित जिनदत्तसूरी थया जे जिनदत्तसूरि विधिना पारंगामीपणारूपी जेतुं नाम ले एवी त्रिपदीने सिद्धांतथी पामीने सत्पुरुषनो शत्रुरूप, अने धर्मनाशक एवो जे उन्मार्ग तेनो प्रगटपणे पादविहार करता बता (वेदता हवा) ते नपर दृष्टांत अन्य दर्शन- कहे जे, जेम विष्णुये जन्मार्गे चालनार बलि राजानो नछेद कर्यों तेम ए
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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