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________________ 19. अथ श्री संघपट्टका - (६७१) AMAVMw टीकाः ॥ ननुयदितेगब स्थिति सर्वत्र विस्तार यामासुरेतावतापिकिमित्यताह॥ अर्थः-आशंका करे ले जे जो ते लिंगधारी सर्व जगाए पोताना गबनी स्थितिउने विस्तारे जे तेणे करीने शुं थयुंए जगाए तेनो उत्तर कहे . ॥ मूल काव्यम्॥ संप्रत्य प्रति मे कुसंघव पुषि प्रोज्जूंनिते नस्मक म्लेबा तुच्छबले दूरंत दशमाश्चर्ये च विस्फूर्जति॥ प्रौढी जग्मुषि मोहराज कटके लोकैस्तदाझापरै रेकीनुय सदागमस्य कथया पीच्छं कदामहे ॥४॥ टीकाः-मोहराजकटकेप्रौढिजग्मु पिलोकैर्वयंकदर्थ्यामहइति संबंध ॥ संप्रत्यधुता प्रोज्जूजिते अज्युदिते नस्मकम्लेबातुबबले ।। जस्मराशितुरुष्कवाधिप सारसैन्येअप्रतिमे तेज स्वितयाऽनन्य साधारणे ॥ अर्थः-मोहराजनुं लश्कर मोटी उन्नति पामे ते लोकवमे अमो कदर्थना करीए बीए एम संबंध बे, आ काळमां नस्मक ग्रहरूपि म्लेच राजा तेनुं मोटुं सैन्य डे, जेना तेजस्वीपणानी वी. जाने जपमा नथी माटे असाधारण के.
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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