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________________ 49 व श्री संघपहा * १५३७) AAAAAAAAAAAAA - - AM पदार्थनो विचार करवामां चतुर पुरुषो ने तेमां पोतार्नु प्रधान पुरु'पपणुं वे, जेथी पूजनीकपणुं .ते पोतानां कहेला वचननी एक वाक्यताए द ए हेतु माटे, एटले पोतानां वचनमां परस्पर वाधा नथी माटे. तथा अन्यथानुपपत्ति ठे ए हेतु माटे, एटले एमणे कह्यांतेवांज पृथ्वी ग्रादि पदार्थ डे माटे तेमनु पूर्वे कयु एवं असिझपणुं नथी एटले सिद्धपणुं . जावार्थः-जे अमारा देव रागादि दोष युक्त नथी माटे तेमनु कहे सत्य . हवे सिद्धांती तेमने जवाब दे ले जे तमारे एम न बोलवं. केमजे तमारा देवनीप्रतिमाने विषे अथवा प्रतिमानी जोमे स्त्री प्रमुखनी संघाथे घटना करेली के तेने जोतां एमने विपे रागादि दोषनी प्रत्यक्ष सिद्धि थाय ने तेमने जो रागादि दोष न होय तो तेमनी प्रतीमाउने विषे रागादि दोषने जणावनार एवां बक्षणनो आरोप कों ने ते संनवे नहि. रागादि दोष सका विनानी तेमनी प्रतिमान घमातीज नथी. पापाणादि प्रतिमाश्रोने विष पापाणादिकना आकार प्रगट रागादिकने जणावनारा ठे जेवा एमां दोप नरेला ने तेवा आकारनी तेमनी प्रतिमायो ठे माटे निश्चे ते देव रागादि दोष सहितज ठे. टीका:--॥ यमुक्तं ॥ सक्ष्यते ललनांगसंगम विधे रागोल . देवश्लेपनुजो जुजोर्जित श्रेयाकल्पलत्तास्त्रशालागो रागादिसकते ये देवा ननु संतुसंवतः स्याहीतरागस्ततः ॥
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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