SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - अथ श्री संघपट्टकः (२५) सारुं बीज बे तेम ते मूल कारण अग्निमां बालवाथी मोटयपनु घर क्यांथीज थाय ? एटले जेम बीज बालवाथी वृक्ष उत्पन्न नयाय तेम दया रूपी मूलनो नाश करवाथी धर्म न धाव ने धर्म बिना मोव्यप नथी ॥ २६ ॥ wwwwww टीका:- चेत् स्वांगस्या निषं: गेण श्रेय स्त दनिषज्यताम् तदेव शीतवाताद्यैः किं जंतुभिरतुनि ॥ २७ ॥ अर्थ:-ने जो पोताना शरीरने कष्ट करवायी श्रेय मान्यो होय तो शीत वातादिके करीने ते शरीरने कष्ट कर. पण निरपराधी जंतुनो नाड़ा शा माटे करे बे. ॥ २७ ॥ टीका:- चायुर्जायु मित्रे छूना मातुराणां शरीरिणां ॥ थमोर साधीयान् किमु जो स्तपसा सुना ॥ २८ ॥ अर्थ:-जेम रोगातुर प्राणी श्रौषधने इवे तेम श्राखाने छता प्राणीनी रक्षा करवी एज अतिशे श्रेष्ठ धर्म- बें माटे हे तापस ! या निर्दय तप बने शुं ? ॥ २७ ॥ टीका:- प्रादुर्भवति न श्रेयो न्हणां प्राणिप्रमापणात् ॥ स्पादयति नो जातु शिलाशकल मंकुरं ॥ २५ ॥ अर्थ:-माणसने प्राणीना वधथी क्यारे पण श्रेष्ठ प्रगट यतुं नथी ते उपर दृष्टांत जेम पाषाण खंरुधान्यना अंकुरने क्यारे पण उत्पन्न करे नहीं तेम ॥ २ए ॥ टीका:- अलंकर्मी दो: स्तंन संस्तं नितरिपुद्विपः ॥ निघ्न निर्विघ्नराज्यश्री विना नीतिं यथा नृपः ॥ ३० ॥ चंद्रमा श्व と
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy