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________________ - अय श्री संघपटक - (४४१) .AADARAPALIALAAAAAAA.LAAAAAAAR MARunaraanARMAPAAnanAAAAAAAAAAAAAAAAAAA - - - - टीका सवारंजपरिग्रहस्य सकलसावधव्यापारधनधान्यादिसंग्रहतत्परस्य गृहिणोपिश्रामस्याप्यास्तां महामुनेरित्यपिशब्दार्थः ॥ एकाशनं अंतर्दिवसमेकवारनियमितनोजनः प्रत्याख्याननेदस्तदादिर्यस्य निर्विकृतिकादेस्तदादिप्रत्याख्यान।। अर्थः समस्त जे सावध वेपार धन्य धान्य आदिक तेनो जे संग्रह तेने विषे तत्पर एवो जे गृहस्थ श्रावक तेना पण अंतरमा एकासणुं प्रमुख पञ्चरकाण नागीने पश्चाताप थाय तो मोटा मुनिना अंतरमा पश्चाताप थाय तेमांशुं कहेवू एम अपि शब्दनो अर्थ ठे एकासणुं ते शुं तो दिवसमा एकवार नियम प्रमाणे जोजन कर, एवो जे पञ्चरकाणनो नेद ते आदि ते जेने एवं जे निर्विकृतिकादिक ॥ एटले विग न वावरवी इत्यादिक, जे पञ्चरकाण तेने॥ टीका:-एकदा कदाचिदष्टम्यादितिथिषुप्रमादवाक्ष्येन नित्यप्रत्याख्यानाजावात् प्रत्याख्याय नियम्य तदपि कदाचित् कृतमेकासनादि न रकतोऽनाजोगसहसाकारादिना न पालयतो जंजतश्त्यर्थः हृदिचेतसि लवेजायेत तीब्रो निष्टुरोऽनुतापः ॥ अर्थ:-क्यारेक करतो एवो श्रावक एटले अष्टमी श्रादिक तिथिने विषे पञ्चरकाण करतो केमजे घणा प्रमादथी नित्य पञ्चरकाण करतो नथी एवो जे श्रावक ते पण क्यारेक करेलु एवं एकाशनादि तेने न पाळतो एटले अजाणे सहसात्कारादिकवमे नागतो एवो ए प्रमादी श्रावक तेना चित्तमां पण अतिशय याकरो पश्चात्ताप चाय जे में श्राशुं कयु.
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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