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________________ (४२) - अथ श्री संघपट्टक memwww.MAARAMMARomwww अर्थः--अथवा एम करतां यत्र शब्दनो अर्थ मादि ए प्र. कारनो करो तोपण शें केवल मगदिकने विषेज ए लिंगधारी वसे के मगदिकने विषे पण वसे ने ए प्रकारना बे विकल्प तमारा मनारथ मार्गने नाश करवाने समर्थ एवा नत्पन्न थाय ने तेमां जो प्रथमनो पद ग्रहण करशो जे केवळ मठादिकने विषेज रहे ने ए प्रकारनुं वोलशो तो तमारी वाणीने मन ए बेनुं विसंवादपणुं थशे एटले मननो अभिप्राय चैत्यमां रदेवानो ने मुखथी मगदिकमां रहेवार्नु कहेवाय. माटे परस्पर विसंवादपणुं थयु. तेणे करीने चैत्यवास जे तमोए अंगिकार कयों ने तेनो जंग थशे केम जे जो एम न होय तो 'मादावेव ए जगाए केवळ निर्धारवाचक जे एव शब्द तेनी असिद्धि थशे एटले एवकार शब्द व्यर्थ पमशे. टीका:-अद्वितीयः॥ तदानेनैवामृतंजक्षय ॥ मग्देवरइयोरुनयनापितनिवाससिझेः सिहं नः समीहितं ॥ अथ मगदावेववसंतिचैत्यवासान्युपगमस्वऽज्युपगममात्रमउवाससिध्यर्थं तंविना यतीनां चैत्यवासप्रयोजकत्वचिंता विधानायनु.. पपवेरितिचेन्न । विकल्पासहत्वात् ॥ अर्थः-बीजो पद तमे कहेशो के अंगिकार करीशुं तो ते पक्षवमेज अमृत जहण करो एटले बीजो पक्ष जे मगदिकने विषे पण त्यारे तो ते पक्ष अमृत लक्षण जेवो हितकारी मठने देव गृह ए बे जगाए तेमना निवासनी सिद्धि थइ तेथी अमाझं वांच्छित सिक थयु हवे मगदिकने विषेज निवास करे ने ने चैत्यवासनो जे आलंबन तेतो अंगिकार मात्र ने मठमां जे निवास करवो
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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