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________________ (४५८) अथ श्री संघपहका - PAWwwindian योग्यनो त्याग करवो इत्यादि सर्वोत्तम यति धर्म ने तथा बीजो श्रा. वक धर्म तथा त्रीजो संविग्न पाक्षिक बे. • टीकाः-इत्यनेनोत्तममध्यमजघन्यन्नेदेन मुक्तिपयत्रयं प्रदर्य संसारपथत्रयं दिदर्शयिषता ग्रंथकारेण प्रतिपादितं सेसामिनदिहीगिहि लिंगकुलिंग दवलिंगेहिं जहतिनीमुरकपहा. संसारपहा तहा तिनि ॥ अर्थः--ए वचने करिने उत्तम मध्यम ने जघन्य ए त्रण जेदे करीने त्रण प्रकारनो मोद भार्ग देखानीने संसार मार्ग पण त्रण प्रकारनो के एम देखामवानी वाये ग्रंथकारे या प्रकारे प्रतिपादन कर्यु बे जे वाकी रह्या ते गृहस्थ लिंगे करीने तथा कुलिंगे करीने तथा अन्यलिंगे करीने मिथ्याष्टि जाणवा. जेमत्रण प्रकारे मोक्ष मार्ग तेम एत्रण प्रकारनो संसार मार्ग छे. टीका:-अत्रसु साध्वादिव्यतिरिक्ता मिथ्यादृष्टयोरहि । लिंगिअपलिंगिनो दर्शिताः ॥ तत्र हिलिंगिनां हलधरगोपालादीनां सामाचार उत्तमः संसारपथः ।। तन्मिथ्यात्वस्यानान्नि ग्रहिकत्वेन संक्लेशानावेनचोत्तमत्वात् ॥ कुतीथिनां तनतानांच मध्यमः ॥ तन्मिथ्यात्वस्यानिग्रहिकत्वेन प्रथमापेक्ष्या निविनत्वात् ॥ अव्यालिगिनां पार्श्वस्थादीनांतु जघन्यस्तन्मिथ्यात्वस्यानिनिवेशिकत्वेन गोष्टामाहिलादिवदितिवझमूल. त्वात ॥ एवंच ग्रंथार्थपूर्वापरपालोचनेन कथं न तेषां:महामि
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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