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________________ (२२) -g. अथ श्री संघपट्टका - WwwN __ . टीका:-निरंकुशं विनिर्यन्ति नागरैः सागरै रिव ॥ राजमार्माः प्रथीयांसोभूयांसोपि धनीकृताः ॥ १५ ॥ .. . . · अर्थः-ते नगरना लोक निर्वघपणे समुनी पेठे उनराया एटले समूहे समूह चाट्या तेणे करीने राजमार्ग घणा मोटा हता तो पण अति सांकमा थया. . . . . - टीकाः-सुपर्वनिलये सौधे जातरूपमहीभृति॥ श्तःसिंहा सनासीनो लगवान् विबुधाधिपः ॥ १६ ॥ - अर्थ:-त्यार पठी एक दिवस नगवान श्री पार्श्वनाथ स्वामि देवाधि देव, देवमंदिर समान ने सुवर्णमय पृथ्वीन धारण करती एवी पोतानी हवेलीने वीषे सींहासन उपर बेग हता. टीका-यांतमेकाशया लोक मवलोक्य विदन्नपि ॥ असा वेति जन:क्वेति पपृछानुचरं जनम् ॥ १७॥ . अर्थ-सर्व लोक एक चित्ते जता हता तेने देखीने पोते जारो ने तोपण आ लोक सर्वे क्या जाय दे. एम पोताना सेवकने पूबयु.॥१७॥ टीकाः-पंचवहितपस्वी ह समायातोऽ स्त्वतो जनः वंदितुं तं प्रयातीति कुमारं सव्य जिज्ञपत् ॥ १७ ॥ अर्थः त्यारे ते सेवक श्री पार्श्वनाथ कुमार प्रत्ये विज्ञापना करतो हवो जे हे महाराज श्रहीं पंचाग्नि साधन करनार तपस्वी श्राव्यो माटे तेने वंदन करवा था सर्वे लोक जाय . ॥ १७॥ टीका:-अयोवाच प्रनु श्चित्रं विपर्यस्त धियोऽधमा:॥ मोहांधत्वात् स्वयं नष्टा नाझयंत्य परानपि ॥ १ए ॥
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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