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________________ 8. अथ श्री संघपट्टक - SAMPAAN.AAAMA N AVAMINAAMW AAAAAAAAAnn AAMAA.AAAAAAAMA - अर्थ-नेजे एक सूत्रमा देखामेलांतेप्मनी प्रवृत्ति ते वे संघाथेज थाय एमब्याकरण नणेला विद्वान लोकोनो न्याय ए हेतु माटे एटले पूज्य तथा अपूज्य ए वे प्रकारनां चैत्य एक सूत्रमा संघाथे गणाव्यां होय त्यारे सर्वे पूज्य थाय अथवा सर्वे अपूज्य याय माटे पूजवा लायक पांच प्रकारनां चैत्य एक सूत्रमा गणाव्यां ने हुश्रपूज्य जे लिंगधारीए ग्रहण करेलुं अनायतन चैत्य ते जुउँ गणाव्युं माटे ते पूज्य चैत्यथी अपूज्य चैत्य जुट गणावतां शास्त्रमा कहेली जे पांचनी संख्या तेनो विरोध नहि आवे. टीका:-नन्वेतावता कुतीर्थपरिगृहीतार्हचैत्यानां सिध्य- . त्वनायतनत्वं नतु स्वयूथ्यवावस्था दियरिगृहोताना मिति चेत्रतेषामपि सिद्धांतोक्तेना नावग्रामत्वेन तथात्वसि॥ अर्थः-लिंगधारी आशंका करे जे श्रा जे.तमोए कद्यु तेणे करीने कुतीर्थिक पुरुषोए ग्रहण करेलांजे अरिहंतनां चैत्य तेनुं अनायतनपणुं लिक थाय पण पोताना युयना एटले पोताना वर्गना जे पासथ्यादिक तेमणे ग्रहण करेलां जे चैत्य तेमनुं अनायतनपणुं तो नथी त्यारे सुविहित मुनि उत्तर आपे ले जे जो एम तमारे कहेवानु होय तो ते न कहे केम जे सिद्धांतमां जावग्राम कह्यो तेणे करीने ते लिंगधारीए ग्रहण करेला जे चैत्य तेनुं पण अनायतनपणुं सिक थाय ते. टीकाः ननु कौयं नावग्रामोनाम यदलावात्प्रतिमानामनायतन प्रसाध्यते नवतेतिचेत् ॥ उज्यते ॥ ज्ञानदर्शनचा
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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