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________________ ● ( ४०० ) अथ श्री संघटक - जळीए बीए तेमां या ते शुं श्रायनन के के श्रनायतन के एवो विचार कही एबीए तेमां प्रथम प्रतिपक्षनो निर्णय करवो तेणे करोने श्रायतननुं स्वरुप तो सुगम वे माटे नायतननुं स्वरूप कहीए बीए. टीका:- तथाह्यनायतन मस्थानं ज्ञानादिगुणाना मिति सा मयं ॥ श्रथवा ॥ ज्ञानाद्याऽऽयदा निजननादनायतनं ॥ ॥ यदुक्तं ॥ सावमाययणं ॥ सोहिगणं कुशीलसंसग्गी || एगद्वाहुतिपया एएविवरीय ग्रायय ॥ अर्थः- तेज कही देखाने ते जे अनायतन एटले अस्थान ते स्थान कोनुं तो के ज्ञानादिक गुणनुं. एटले ज्ञानादिक 'गुणं जेमां स्थान करी रह्या नथी तेने अनायतन कहीए. ए प्रका नो सामर्थ्य की प्राप्त थयो. अथवा ज्ञानादि गुणनो थाप एटले लाज तेनी हानि करनार ए वे माटे श्रनायतन कहीए. ते वात शास्त्रमां कही वे जे सावय जेमां ठे ते श्रनायतन जागावं तवा ते शुद्धपणानुं स्थान वे ने तेमां कुशीलनो संबंध रखो वे माटे ए सर्व पद एक वाळांठे केम जे एने सावय कड़ो अथवा श्रनायतन कहो अथवा शुद्धस्थान कहो अथवा कुशीस संबंधी कड़ी ने एथी जे विपरीत तेने श्रायतन कढ़ीए. टीका:- तत्रद्वेधा ॥ लोकिकलीफोन रिकभेदात् ॥ श्र किमपि यज्ञानेदाद्विधा ॥ तत्र अन्यतो लोकिकमनाय
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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