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________________ . . अथ श्री संघपट्टका - NAMAA हितकारी पुरुषतुं वचन एम सूचना करी॥ केमजे जे हितकारी तेज था प्रकारे कहे . झा हेतु माटे ? एम कहेता होयने शुं एप्रकारे कडं एवी आशंका करी कहे जे पार्श्वनाथजीतो करुपाना समुपजे. माटे एम विचार कर्यो जे मारे किया प्रकारे था सा, कुमार्गरूपी काद्वी उधरवो, ए प्रकारनी दया रूप श्रमतना समुह नगवान बे. साथी के लोक उपर अनुकंपा को विना कोइ पर्ण पोताने दुःख थq ते अंगीकार करीने कुमार्गने ने हणे माटे.. . ...ट्रीकाः किंकुर्वाण एवं जगादेवे त्यताह स्पष्टयन् प्रकटी 'कुर्वन् ।। किं कमल मुनितपः कमगनिधान लौकिक तपखिन पंचाग्निरूपकष्टानुष्टानं ॥ . .. .. अर्थ-शुं करता उता एम कता होयने शुंए प्रकारनी आशंका करी कहे जे जे कम तापसतुं तप प्रकट करता उता, केमत नाम खोकमां तपस्वी कदेवातो हतो तेनी पंचाग्नि साधनरूप "कष्ट क्रिया हती ते प्रसिद्ध करी. . . टीका:-ननु कमवतपो लोके स्पष्टमेव किं तत्स्पष्टनेनेत्यतबाह । पुष्टंप्राणिवधमुग्धप्रतारणलान्नपूजाख्यातिकामनादिदोषकलापयुक्तं ॥ . अर्थः-तर्क करी विशेषण प्रयोजन देखामे बे में कम तापसन तप लोकमां प्रगटज हतुं माटे तेने प्रगट कर्यु एमां शुं विशेष ? एवी श्राशंका करी ते तपर्नु विशेषणं देखा , जे एतप दुष्ट , पायारूप में, अनेक जंतुनी जेमां हिंसा, अंज्ञानी जोळा माहासने वगवाना जपाय रूपबे,अनेक प्रकारना लाल तथा लोकमां
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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