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________________ अथ श्री संघपटक A अर्थः-वळी व्रत एटले सर्व विरतिरुप, आदि शब्दथी देश विरतिरुप, तथा समकितनुं आरोपण इत्यादि व्रतना विधिनो निषेध करे ने एटले सुविहित पासे जइने श्रावकने कोश् व्रतनो अंगिकार न करवो एम निषेध करे शाथी के ए लिंगधारी एम जाणे जे आ श्रावक सुविहित पासे जशे ने व्रतादिक लेशे ने श्रापणी पासे दिशादी नहि से त्यारे श्रापणो आ प्रकारनो निर्वाह नहि चाले ए प्रकारनी बुद्धि राखे डे माटे ए अघटतुं करवा मांमयुं बे ने ते श्रावक सुविहित पासे जशे, देशना सांजळशे व्रतादि ग्रहण करशे ए हेतु माटे उत्सूत्र प्ररुपणारुपी तरवारवमे ते श्रावकनां विवेकरुपी मायां कापी नांखे ने ए हेतु माटे ते लिंगधारी अतिचारना प्रवेशथी मुर्गतिरुप वजूपात पोताना नपर नांखे ले. टीका-अन्यतिपातनं चयतीनां पापादपिपापीयः ॥ तदुक्तं॥ किमतोपि महापाप, मज्ञानातूतुकः स्वयं ॥ पातयत्यंधकूपे यन्मूढः सहचरानपि ॥ श्रागमेप्युक्तं किं एत्तो कठ्यरं, सम्म श्रणहिगयसमयसनावो ॥अन्नं कुदेशणाए कयरागंमि पोमेशा कोश्तो पावायरो,जोन निउत्तो पमाणवाणम्मि॥ जाणंतो जिणवयणं पमाणमपमाणयंतोन ॥ एवंच चिंत्यमानमाधुनिकमुनीनां सावद्याचरितमागमविरुडतया न घटामियनीतिवृत्तार्थः॥१॥ अर्थः-वळी वीजाने पुर्गतिमा नांखद् ए तो यतिनां पाप
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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