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________________ (२७०) - अथ श्री संघपट्टक हासन त्यां लइ जाय जे. त्यारे तेना चित्तनी अनुवृत्ति राखवे करीने प्रत्नावनादि लाननी संजावना करता सता ते श्रासन उपर बेसीने पण व्याख्यान करे . टीकाः-अन्यथातु तेषांजगवत्समीपवर्तिनामुत्सर्गेणतत्पाद पीठाध्यासनेन कदाचित्ततः पृविहरतांचौपग्रहिकपट्टायुपवेशनेन स्वनिषद्योपवेशनेन वा व्याख्याविधिः प्रतिपादितः ॥ एव मधुनापिगीतार्थसूरिनिरुत्सर्गेणौपग्रहिक पट्टस्व निषयाधुपवेश नेन व्याख्यानं विधेयं ॥ अर्थः-एम जो न होय तो जगवतनी समीप रहेनार एवा ते गणधरने नत्सर्गे मार्गे ते नगवंतना पादपीठ नपर बेसवातुं ए हेतु माटे ने कयारेक ते जगवंतथी जुदा विहार करे त्यारे तो चौद नपकरणथी बाहार जे उपकरण ते औपग्रहिक कहीए ते उपग्रहीक एवां पाटप्रमुख आसन ते उपर बेसबुं तेणे करीने अथवा पो ताना श्रासन नपर बेसबुं तेणे करीने व्याख्यान विधि प्रतिपादन कों जे. एमश्रा कालमां पण गोतार्थसूरीये नत्सर्ग मार्गे उपग्रहीक पट्ट अथवा पोतानुं श्रासन ते उपर बेसीने व्याख्यान करवं. टीका अपवादतस्तु कदाचित्राजकुलादिगमने तत्प्रार्थनया सिंहासनाद्युपवेशनेनापि॥ नत्विदानीतनरुढयाय थाकथंचिसिंहासनादावुपवेष्टव्यमिति ॥ एतेन यदपि वैरस्वाम्युदाहरणेन यतीनां महार्हसिंहासनाध्यासनप्रतिपादनं तद- .
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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