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________________ (२१०) - अथ श्री संघपट्टक wwwwwwwwwwwww NAAMANAMAMMMMMAawwammam बहुधाए राजा आदिक महर्षि लोक ते तेवा आसन उपर बेसे ठे एम देखीए बीए, ने वळी यतिनी लोकमां हांसी थाय जे. चशब्दनो ए अर्थ डे जे दोषनो समूह एथी थाय . लोकनी हांसी एम थाय ने जे अहो! जीख मागीने आजीविका करनार मुंमीत माथावाला पण आ प्रकारना आसन उपर बेसे इत्यादि ी सहित लोकनां वचन संचलाय ए हेतु माटे लोकमां अतिशय प्रसिक गादी श्रादिकनो परिग्रह ले ते महा धनपणे संसारमा मू कारण ने वळी सुखकारी जेनो स्पर्श डे ने अतिशय कोमळ रू श्रादिक वस्तुए नरेलां सात शीलपणने जणवनार एवां ते सिद्धांतमां मुनिने अघटितपणे बेसवानो निषेध करेलोले माटे गादी श्रादिक श्रासन तेने विषे साधुने बेसवानो संजवज नथी. - टीका-उच्चै रतिशयेन इतिहेतौ एन्यो हेतुन्यो न खलु , नैव खलु रवधारणे मुमुक्षोर्मोकार्थिनो यतेः संगतं युक्तियुक्तं गब्दकिाद्यासनं पत्नोगतयेति शेषः ॥ लोकप्रसिको रूतादिजूतासनविशेषो गन्दिका ॥ आदिशब्दान्मसूरकसिंहासनादिपरिग्रहः ॥ एतेन यदपि-नाणाहिउँवरतरमित्याद्यागम बलेन प्रवचनप्रनावनांगतया यतीनां गन्दिकासिंहासनायासनोपवेशनसमर्थनं तदपि सुखशीलता विलसितं ॥ . : . अर्थः-मोदना अर्थी यतिने गादो श्रादिक श्रासन अतिशय अघटितज बे. 'न खलु' ए अध्ययनो निश्चयवाचक अर्थ डे, माटे यतिने ए प्रकारना आसननो उपजोग करवो ते जुक्ति जुक्त निश्चे नथीज. पन्नोगतया' एटर्बु पद उपरथी शेष लेवु. लोक
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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