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________________ (२९२) - अय श्री संघपट्टका पूजारी रह्या डे ने जूनू ने बहुधा पमेढुं एवं एक जिनमंदिर जे गा. ममा डे ए प्रकारना गाममां आव्या सता तेमां ते सुविहित साधु अपवाद मार्गे देवपूजारीनी शिक्षादिकने अर्थे देवकुळमां गया ने विचार कर ले जे था चैत्यनुं समार थये सते आ गामना नजिक लोक नेते जैन मार्गनो अंगिकार करशे, एवं संलव डे केम जे सु. विहित पुरुषतुं जे श्रागमन ते जैन मार्गनो अंगिकार करवारुप गुण नणी ने माटे देवकुलीक प्रत्ये ते सुविहित बोले जे जे 'सोलेहमंख' इत्यादि गाथाए करीने कहे . । टीकाः-लोदेवकुलिका एतानिमंखफलकानीव मंखफल कानि यथा मंखस्य फलकोज्वलतया प्रासनिर्वाह एवं नवता. मपि. चैत्यनिर्मवतया तत्सदनसऊतयाच निर्वाहः॥ श्रतो निर्वाहहेतुचैत्यानि शीलयत समारचयत ॥ इतरे सुविहिताः चोयंति प्रेरयंति तंतुमाश्सु लूतातत्वप्रसारणादिषु ॥ अथ ते लिंगिनः सवृत्तयः चैत्यचिंता विनापि प्रासंचितविणनिचयेत विद्यमाननिर्वाहा स्तदा तान् अनियोजयंति ॥ अंबामिति निष्टुरखाचा शिक्षयंति ॥ यथाजोऽझाकिमित्येतानि चै'त्यानि न समारचयथ यतएतानि विना पश्चादपि न नविता जवतां निर्वाहः॥ . अर्थः-जेलो देवकुक्षिक आजे चैत्य के तेतो मखफल जेवां..एटले मंख ते कोश्क जाति विशेष पुरुष, ते पोतानी श्र जिविकाना कारणरुपः जे चित्रफलक तेनी उज्वलता राखे तो है थकी तेनो.जेम निर्वाद थाय ने तेम तमारे पण चैत्यनी निर्मळ
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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