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________________ (२१२) 8. अय भी संपपटक AmA पण चौरादिकनो उपश्व बहुधा 'शास्त्रमा संजळाय डे, वली ते काले पण यतिने परघरनो श्राश्रय करवा शास्त्रमा का डे ए हेतु माटे॥ टीकाः॥ यदाह ॥ बाहिरगामे वुत्था उज्जाणे गणवसहि पमिलेहा ॥ शहराज गहियजमा वसहीवाघायउड्डाहो ॥सवेविय हिंता वसहिं मन्गति जहउ समुयाणं॥ लद्धे संकलियनिवेयणं तु तत्थेवन नियाहे ॥ अर्थ:-श्रावी गयो . टीका:-॥तथा वृषजकल्पनया स्थापिते प्रामादौ यतीनां वसतिगवेषण चिंतायामुक्त यथा, नयराइएसु घिष्पद वसही पुवामुहं नविय वसहं ।वासकमी निविहे दीकय अग्गमिकाप्रयं। सिंगरकौमे कलहोजाणं पुण नात्य होइ चलणेसु॥अहिठाणे पुट्ठरोगो,पुबंमिय फेमणं जाण ॥मुहमूलं मिय चारंसिरेय क. कुडेय पूयसकारे ॥ खंधे पहीश्नरो पुहंमिय धाययो वसहो। अर्थः-अर्थ पाधरो . टीका नचैवं विधावसतिर्मामादिमध्यमंतरेण संनवति ।। नयानवासएवच तदानी मनिमते प्रतिपदमुक्तन्यायेन प्रामाचं. सर्वसतिनिरूपणानोपपद्येता एवचंतदानीमपि परग्रहवसतेयंती. ना जावानप्रथमपद ॥
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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