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________________ (१३०) - अथ श्री संबपट्टकः -ww.www.www. wwwwwwwwwwwwww - टीकाः-खबुनिश्चये जिनगृहेऽहंदनवनेऽर्हन्मता जगवदा गमनिष्णाता यतयोनैव वसंति सततमवतिष्टते ॥ तदागमे तन्निवासस्यात्यंत निवारणात् ॥संतोविवेकिनः॥ कुतश्त्यताह ॥ सतीशोलनाऽकृत्रिमा नक्तिःशारीरसंचमातिशयस्तस्य योग्य मुचितं तस्मिन् निक्तिरेवयतस्तत्र कर्तुं युज्यत इतिन्नक्तियोग्यता मेव विशेषतो विशेषणद्वारेण दर्शयति अर्थः-अरिहंत मतना जाण एटले नगवाननां आगम तेना पारगामी एवा साधु निश्चे जिनघरमां निवास नहीज करे, एटले तेमां निरंतर नहीं रहे. साधुने जिनमंदिरमां निवास करवानुं शास्त्रमा अत्यंत निवारण कर्यु ले माटे संतजे विवेकी पुरुषते त्यां नहीं रहे. शा हेतु माटे ? तो त्यां कहे के जे, जिनमंदिर के ठे, तो सारी क. पटर हित जे भक्ति तेने योग्य एटले नक्ति करवा घटित डे माटे नक्तिनुं योग्यपणुंज विशेष करीने विशेषणबारे कही देखामे . टीकार-गायंतः कलमंडादिस्वरेण ग्रामरागैगवद्गुणानेवोत्कीयंतोगंधर्वाः प्रधानगायना यत्र तत्तथा ॥ नृत्यंती नाट्य शास्त्रोक्तक्रमण करचरणायंगविदेपंकुर्वती पणरमणी वारस्त्रीनतकी यत्र ततथा अर्थः-मधुर गंजीर एवा स्वरे करीने नाना प्रकारना रागरा गणीये सहित गंधर्व एटले प्रधान गायक लोक ते जे जिनमंदिरमा गात करे ले एवं ने नाट्यशास्त्रमा कह्या प्रमाणे हाथपग आदि अं
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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