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________________ AAAAMAN - अथ श्री संघपटक १९६) अर्थः-या जगाये बीजो-स्त्री संसक्त निवासने विषे जो साधु निवास करे तो पूर्वे गृहस्थपणामां स्त्री साथे अनुभव करेसो जे विलास तेनुं स्मरण थq इत्यादिके करीने चोथा व्रतना नंगनों प्रसंग थाय तेणे करीने, ने बीजो शुरू निवासनो लाल ने थाय तेथी पतिने आधार्मिक निवास तेनी आज्ञा करेली ने प्रामादिमां रहेनारने तो स्त्री संबंध रहितने शास्त्रमा कहेला जे सर्व गुण तेणे सहित एवो निवास मळवो उर्लन्न , केम जे घरना अं. दरमां तो स्त्रीयोना शब्द सांजळवानो संचव ए हेतु माटे महासाधुए परघर वास न करवो. टीका:-जिनगृहवासे तु यतीनां न तथासंसक्तिसन्नवा, चैत्यवंदनार्थमेव कणमात्रमागत्य गंत्रीणां श्राविकादीनां यति- . निः सह तथाविधप्रसंगानुपपत्तेः ।। नच एका मूलगुणेसु-. . मित्याद्यागमबलेन प्रत्युत स्त्रीसंसक्तवसतित्यागेना धार्मिकव :सतिवासो यतीनां संगतो, न तु जिनगृहवास इतिवाच्यं श्रा... धाकर्मस्त्रीसंसक्त्यादिदोषजालरहितजिनगृहवासखान श्राधाक. । मवसतिवासस्यात्यंतमनुचितत्वात् ॥ .. अर्थ:-जिन घरमां निवास करे त्यारे तो यतिने ते प्रकारना स्त्री संबंधनो संजव नथी केम जे चैत्यवंदनने अर्थेज क्षण मात्र आवीने जनारी एवी श्राविकादिक साथे यतिने ते प्रकारनो प्रसंग नथी थतो जेवो तेना घरमा रहे थाय ने तेवो वली एका मूलगुणेसुं" इत्यादि आगमना बले करीने उलटो स्त्री संबंधरहित निवासनो त्याग करवो तेणे करीने आधाकर्मिक निवास साधुने करवानो संलव्यो, पण जिनघरमा रहेवानुं संजव्यु नहीं ए प्रकारे
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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