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________________ तीर्थङ्करं चरित्र - ११००० केवलज्ञानी, १५३०० वैझियलन्धिधारी, ८४.. वादलम्धिसंपन्न, २५७००० श्रावक और १९३००० श्राविकाओं का उनका परिवार था। केवलज्ञान प्राप्त कर वीस पूर्वाग और नौ मास कम एक लाखें पूर्व तक भव्य प्राणियों को भगवान प्रतिबोध देते रहे । बीस लाख पूर्व का आयु पूर्ण कर भगवान ने समेतशिखर पर्वत पर फाल्गुन कृष्णा सप्तमी को मूल नक्षत्र के योग में पांच सौ मुनियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया । भगवान पद्मप्रभ के निर्वाण के पश्चात् नौ हजार करोड़ सागरोपम बीतने पर सुपार्श्वनाथ का निर्वाण हुआ। ८. भगवान चन्द्रममा धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में 'मंगलावती' विजय में 'रत्नसंचया' नाम की नगरी थी। वहाँ 'पद्म' नाम के वीर राजा राज्य करते थे। वे संसार में रहते हुए भी जल कमलवत् निरासक्त थे। कोई कारण पाकर उन्हें संसार से विरक्ति हो गई और उन्होंने युगन्धर नाम के आचार्य के समीप दीक्षा ग्रहण कर ली । चिरकाल तक संयम का उत्कृष्ट भाव से पालन करते हुए उन्होंने तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन किया । आयु पूर्ण होने पर पद्मनाभ मुनि वैजयन्त नामक विमान में ऋद्धि संपन्न देव हुए । वहाँ वे सुखपूर्वक देवआयु व्यतीत करने लगे। स्वर्ग से चवकर चैत्रवदि ५ के दिन अनुराधा नक्षत्र में, 'पद्मा का जीव 'चन्द्रानना' नगरी के पराक्रमी राजा 'महासेन' की रानी 'लक्ष्मणा' के गर्भ में आया । इन्द्रादि देवों ने भगवान का गर्भ कल्याणक मनाया । गर्भकाल के पूर्ण होने पर पौष कृष्णा द्वादशी को भना। नक्षत्र में लक्ष्मणा देवी ने पुत्र को जन्म दिया। इन्द्रादि देवों ने।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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