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________________ ४८ आगम के अनमोल रत्न कनकावली आदि अनेक प्रकार की तपस्या की। अन्तः में संथारा ग्रहण कर देह का त्याग किया । वह भरकर विजय नामक अनुत्तर विमान में तेतीस सागरोपम की आयु वाला देव हुमा । वहाँ देवताओं के शरीर एक हाथ के होते हैं । उनके शरीर चन्द्रकिरणों की तरह उज्ज्वल होते हैं । वे सदैव अनुपम सौख्य का अनुभव करते रहते हैं। वे अपने अवधिज्ञान से समस्त लोक नालिका का अवलोकन करते हैं । वे तेतीस पक्ष बीतने पर, एक बार श्वास लेते हैं । तेतीस हजार वर्ष में एक बार उन्हें भोजन की इच्छा होती है। विमलवाहन मुनि का जीव भी इसी स्वर्गीय सुख का अनुभव करने लगा । जव आयु के छह महीने शेष रहे तब अन्य देवताओं की तरह उन्हें देवलोक से चवने का किंचित् भी दुःख नहीं हुभा प्रत्युत भावी तीर्थकर होने के नाते उनका तेज और भी बढ़ गया। भगवान अजितनाथ का जन्म ___ भरत क्षेत्र में विनीता नामकी सुप्रसिद्ध नगरी थी । इस नगरी में इक्ष्वाकु वंशतिलक भनेक राजा होगये । उसी इक्ष्वाकु वश का जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था। उसके छोटे भाई का नाम सुमित्र विजय था यह युवराज था। जितशत्रु राजा की रानी का नाम विजयादेवी एव सुमित्रविजय की रानी का नाम वैजयन्ती था। दोनों रानियाँ अपने रूप और गुणों में अनुपम थीं। वैशाख शुक्ला १३ को विमलवाहन मुनिराज का जीव, महारानी विजयादेवी की कुक्षि में विजय नामके अनुत्तर विमान से आकर उत्पन्न हुआ । उस रात्रि के अन्तिम प्रहर में महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे। उसी रात को युवराज सुमित्रविजय की महारानी वैजयन्ती ने भी चौदह महास्वप्न देखे किन्तु श्रीमती विजयादेवी के स्वप्नों की प्रभा की अपेक्षा इनके स्वप्नों की प्रभा कुछ मंद थी। दूसरे दिन स्वप्नपाठकों को बुलाया गया और उनसे - स्वप्न का फल पूछा । स्वप्न पाठकों ने कहा-महारानी विजयादेवी त्रिलोक पूज्य तीर्थंकर महापुरुष को जन्म देगी और युवराज्ञी वैजयंती चक्रवर्ती की माता बनेगी।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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