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________________ आगम के अनमोल रत्न समवशरण के नजदीक पहुँचने पर देवों के आगमन और केवलज्ञान के साथ प्रकट होने वाले *अष्टमहाप्रतिहार्य की विभूति को देखकर माता मरुदेवी को बहुत 'हर्ष हुआ। वह मन ही मन विचार करने लगी कि मैं तो समझती थी कि मेरा ऋषभकुमार जंगल में गया है, इससे उसको तकलीफ होगी परन्तु मैं देख रही हूँ कि ऋषभकुमार तो बड़े आनन्द में है और उसके पास तो बहुत ठाठ लगा हुआ है। मै वृथा मोह कर रही थी। इस प्रकार अध्यवसायों को शुद्धि के कारण माता भरुदेवी ने घाति कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान, केवलदर्शन उपार्जन कर लिये। उसी समय आयु कर्म का भी अन्त आ चुका था। सब कर्मा का नाशकर माता मरुदेवी मोक्ष पधार गई। . भरत महाराज भगवान को वन्दना नमस्कार कर समवशरण में वैठ गये । भगवान ने धर्मोपदेश दिया जिससे श्रोताओं को अपूर्वशान्ति मिली। भगवान के उपदेश से बोध पाकर भरत महाराज के पुत्र ऋषभसेन ने पाच सौ पुत्रों और सात सौ पौत्रों के साथ भगवान के पास दीक्षा अंगीकार की। भरत महाराज की बहिन सती ब्राह्मी ने भी अनेक स्त्रियों के साथ संयम अंगीकार किया। समवशरण में वैठे हुए बहुत से श्रोताओं ने श्रावकवत लिये और बहुतों ने सम्यक्त्व धारण किया । उसी समय साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ की स्थापना की। भगवान ने ऋषभसेन आदि ८४ चौरासी पुरुषों को 'उप्पण्णेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा' इस त्रिपदी का उपदेश दिया। जिस प्रकार जल पर तेल की बूंद फैल आती है और एक बीज से सैकड़ों हजारों बीजों की प्राप्ति होती है उसी प्रकार त्रिपदी के उपदेश मंत्र से उनका ज्ञान बहुत विस्तृत हो गया। उन्होंने अनुक्रम से चौदह पूर्व और द्वादशांगी की रचना की । ' १ *अशोकवृक्ष : देवकृत अचित पुष्पवृष्टि ३ दिव्यध्वनि ४ वर ५ सिंहासन ६ देवदुन्दुभि ८ छत्र ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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