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________________ “पू. श्रीमानमलीजी म. ३५ बोते हैं वैसा पाते हैं । आपलोग पाप करते हैं । जीव हिंसा के ही काम करते हैं तो आप लोग सुखी कैसे हो सकते हैं ? अगर आप लोग अपने गांव की समृद्धि चाहते हो तो जीवहिंसा और हिंसामय व्यापार का परित्याग कर दो।" पूज्यश्री के वचनों का असर गांव वालों पर पड़ा । उन्होंने उसी क्षण साँप बिच्छू आदि प्राणियों को मारना, बैलों की खसी करना, सन अम्बारी को पानी में सड़ाना आदि पापमय प्रवृत्तियों का त्याग कर दिया । पालना के तेली समाज ने उपरोक्त पापमय प्रवृत्तियाँ न करने का सामाजिक नियम बनाया। पूज्यश्री ने वहाँ से विहार कर दिया । तेली समाज की सावध प्रवृत्ति के त्याग से स्थिति सुधरने लगी । वे थोड़े दिनों के बाद ही सम्पत्तिशाली बन गये । इस बात को १०० वर्षे हो गये हैं वहाँ का तेली समाज आज भी उपरोक्त नियम को पालता है। यहाँ की प्रमा आज भी पूज्यमानजी स्वामी का अत्यन्त आदर पूर्वक स्मरण करती है। यह था पूज्यमानजी स्वामी के उपदेश का चमत्कार ! मेरी मृत्यु यहाँ नहीं होगी आपकी उम्र ८० वर्ष की हो चुकी थी । आपका जीवन गंगा की धारा की तरह पवित्र और उज्ज्वल था । आपने मेवाड़, मारवाड़ गोरवाड़, सिरोही गुजरात काठियावाड आदि देशों में विचर कर भगगन महावीर का अहिंसा सन्देश सुनाया | आप के उपदेश सुनकर अनेक प्राणियों ने अपने जीवन को पवित्र बनाया । अनेक स्थानों पर देवी देवता के नाम पर होने वाली जीव हिंसा आपके उपदेश से सदा के लिये बन्द हो गई । भापके मांगलिक श्रवण से अनेक लोगों के भूत भाग जाते थे। अनेकों के रोग मिट जाते थे । अनेक व्यक्ति दरिद्रता के भार से मुक्त होते थे। एक बार आप विहार करते हुए मेवाड़ के एक छोटे गाव में पधारे । वहाँ सहसा आपका स्वास्थ्य विगड़ा । कमजोरी बढ़ती गई
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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