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________________ २६ पू० श्रीमानमलजी म. को उन्नति होगी। दीक्षा लेने की भावना से मानमल अब दुगुने उत्साह से धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करने लगे । माता पिता धार्मिक संस्कार के थे अतः बालक मानमल की तीन वैराग्य-मनोवृत्ति को देखकर उन्होंने उसे दीक्षा की आज्ञा प्रदान कर दी। वि. सं. १८९२ में कार्तिक शुक्ला पंचमी के दिन बड़े समारोह के साथ वैरागी मानमल ने ९ वर्ष की कोमल वय में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के अवसर पर मेवाड़ के अनेक ग्राम नगरों के श्रीसंघ सकुटुम्ब सपरिवार जैन और जैनेतर उपस्थित थे । वैरागी मानमल अब मुनि मानमल बन गये । साधुवेष धारण करना जितना सरल है उतना उसपर चलना सरल नहीं । गुरु महाराज श्री नृसिंहदासजी उग्र तपस्वी और कठिन साध्वाचार का पालन करने वाले थे। ऐसे सच्चे साधु की तत्त्वावधानता में रहना रहनेवाले में सच्चे साधु बनने की लगन हो तभी सम्भव था । गुरु महाराज तनिक भी शैथिल्य अपने साधु एवं शिष्यों में देखने को तैयार नहीं थे। वे बड़े परिश्रमी थे। रात्रि में कम निद्रा लेते थे। दिन में कभी भी शयन नहीं करते थे । व्यर्थ सम्भाषण करना उनके स्वभाव में था ही नहीं । ध्यान और स्वाध्याय में ही उनका सारा समय व्यतीत होता था । ऐसे कठोर तपस्वी का भनुशासन कितना कठोर हो सकता है यह सहज हो समझा जा सकता है। चरित्रनायकजी सुसंस्कारी एवं सुसंस्कृत तो थे ही, फिर भाग्य से ऐसे प्रखर विद्वान एवं शुद्ध साध्वाचार के पालक महातपस्वी विचक्षण बुद्धिशाली गुरु की निश्रा में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो क्या कमी रही ! बस आप शुद्ध साध्वाचार का पालन करने लगे और स्वाध्याय में रात और दिन तल्लीन रहकर अपनो उन्नति करने लगे। मापने अल्प समय में ही अनेक सूत्रों को कण्ठस्थ कर
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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