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________________ पू. श्रीरोडीदासजी म० और गालियाँ बकने लगा। उस मूर्ख योगी के कहने से कुछ लड़कों ने तपस्वीजी पर पत्थर भी फेंके । पत्थरों की मार से तपस्वीजी घायल हो गये लेकिन तपस्वीजी परम शान्त थे । उन्होंने अपने मुँह से उफ तक नहीं की। चतुर्थ आरे के अर्जुन मुनि का तत्काल स्मरण हो जाता है। अचानक एक राहगीर की दृष्टि घायल. तपस्वीजी पर पड़ी। उसने गाँव में तहसील के कर्मचारियों को जाकर खवर दे दी। यह खवर पाते ही कर्मचारी और गांव के कुछ जैनेतर लोग तपस्वीजी के पास पहुंचे और सारी घटना पूछने लगे, तपस्वीजी ने मौन ले लिया। उस उद्दण्ड योगी के बारे मे तपस्वीजी ने एक शब्द भी नहीं कहा। वहाँ से तपस्वीजी विहार कर समीप के गांव में पधार गये लेकिन स्थानीय लोगों से रहा नहीं गया । उसे पाठ सिखाने की दृष्टि से उन्होंने थाने में रिपोर्ट कर दी। पुलिस बाबा को गिरफ्तार करके ले गई और उसे हवालात में बन्द कर दिया । जुर्म साबित होने से उसे कुछ दिन के लिए कैद की सजा हो गई। जब तपस्वीजी को बाबा के हवालत में बन्द होने की सूचना मिली तो उन्हें बड़ा अफसोस हुआ। यहाँ तक कि उन्होंने अट्ठाई का पारणा लाना भी छोड़ दिया। उन्होंने लोगों से कहा कि जबतक उस योगी को कैद से मुक्त नहीं किया जायगा, तब तक मै माहार नहीं करूँगा । तपस्वीजी के इस सत्याग्रह से लोग घबरा गये। उन्होंने पुनः दौड़ धूपकर उस संन्यासी को जेल से मुक्त करवा दिया। यह थी तपस्वीजी की अपने शत्रु के प्रति भो मैत्री-भावना । अपकारी के प्रति भी उपकार __ इसी तरह एक बार आप रायपुर (मेवाड़) गाँव में पधारे । वहां गांव के बाहर निर्जन स्थल में एक सूखे नाले (वारी) की तप्त रेती में आतापना लेने लगे। एक गार व्यक्ति तपस्वीजी के शिर पर खदान से निकली हुई पतली शिला रख कर उस पर बैठ गया। वह तपस्वीजी के शरीर के अन्य भागों पर भी
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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