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________________ १४ पू० श्रीरोडीदासजी म० करने के बाद तपस्वीजी जान गये कि आज का भाहार जो श्रावक ने मुझे बहराया था वह विष मिश्रित था। शत्रु का भी हित चाहने वाले तपस्वीजी ने यह बात किसी से भी नहीं की। आपके तपोबल से विष मिश्रित आहार अमृत बन गया। पंचमकाल में भी धर्मरूचि अनगार सा आदर्श आपने उपस्थित किया। हलाहल जहर को भी अमृत मानकर खा आने वाले महान तपस्वीजी जिस समाज में हुए हैं, वह समाज कितना धन्य होगा! । तपस्वीजी की अपूर्व सहन शीलता--' एक बार भाप सनवाड़ पधारे। गर्मी की ऋतु थी। सूर्य की प्रचण्ड किरणें आग उगल रही थीं। आप प्रतिदिन के नियमानुसार गांव के बाहर कुछ दूरी पर विषम कंकरीली भूमि में एक चट्टान पर भातापना ग्रहण करने लगे। एक दिन जब आप ध्यान मग्न थे; कुछ वालों को मजाक सूझी। वे तपस्वीजी के पैर पकड़ कर उन्हें इधर उधर घसीटने लगे। तपस्वीजी ने उन ग्वालों को कुछ भी नहीं कहा। जब ध्यान पूरा हो गया, तो वे खड़े होकर गांव की तरफ चलने लगे। ग्वालों ने तपस्वीजी को गांव की ओर जाता देखा तो वे घबड़ा गये। वे सोचने लगे-यदि तपस्वीजी हमारे व्यवहार की गांववालों से शिकायत करेंगे, तो हमारी खैर नहीं। वे तपस्वीजी के पास आये और दीनभाव से खड़े हो गये। तपस्वीजी उनकी मनोदशा समझ गये । तपस्वीजी ने उन ग्वालों को कहा-भाई। घबराने की आवश्यकता नहीं। तुम्हारी कोई भी शिकायत गांव में नहीं होगी। तपस्वीजी की इस महानता से ग्वालों का हृदय बदल गया और वे अपने अपराधों की क्षमा मांगने लगे । यह थी तपस्वीजी की अपूर्व सहनशीलता। हाथी का कठोर अभिग्रह एक बार तपस्वीजी श्री रोडीदासजी महाराज उदयपुर पधारे । वहां आपने एक कठोर अभिग्रह ग्रहण किया कि उदयपुर के महाराणा के बैठने का हाथी अगर मुझे आहार बहरावे तो ही मै पारणा वरूँगा।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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