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________________ पू० श्रीरोडीदासजी म० लगी । तपस्वीजी की इस बढ़ती हुई नेत्र पीड़ा को देखकर स्थानीय श्रावक भी बड़े चिन्तित हो गये । अञ्जलिबद्ध हो श्रावकों ने तपस्वीजी से नेत्र को चिकित्सा करवाने की प्रार्थना की । . राजकरेडा के राजासाहब श्री भवानीसिंहजी साहब को भी जब पता लगा तो वे भो तपस्वी के दर्शन के लिये आये और नेत्र का इलाज करने का अत्याग्रह करने लगे । राजासाहव ने कहा- आप गढ (महल) में पधारें, वहाँ मोतियों का कज्जल है। इस कज्जल से आपको अवश्य लाभ होगा । स्थानीय राजा और श्रावकों की विनती को मान देकर किसी समय तपस्वीजी कज्जल के लिए राजा साहब के महल पधारे । द्वार पर पहुँचने के बाद तपस्वीजी के कानों में कुछ वार्तालाप सुनाई दिया। एक राज सेवक, दूसरे राज सेवक से कह रहा था कि आज हमलोग सारी रात जगकर तपस्वी के लिये कज्जल बनाते रहे । तपस्वीजी ने जब यह सुना तो वे वापस लौट पड़े । तपस्वीजी को वापस जाता देख राजसेवक घबरा उठा और वह दौड़कर राजा साहब के समीप पहुँचा और तपस्वीजी से वापिस चले जाने की बात कही । राजा साहब यह सुनते ही दौड़कर तपस्वीजी के पास पहुंचे और कज्जल ग्रहण करने का आग्रह करने लगे। तपस्वीजी ने कहाराजन् ! तुमने रातभर राजसेवकों (नौकर) को जगाकर जो मेरे लिये. मोतियों का कज्जल बनवाया है वह मुनि मर्यादा के प्रतिकूल है ।। मुझे इस प्रकार का कज्जल लेना नहीं कल्पता। यह कह कर तपस्वी-- जी स्थानक में पधार गये। वेदना प्रतिक्षण बढ़ती जा रही थी। अशुभ कर्म का उदय मानकर तपस्वीजी सोचने लगे "रोग का मूल कारण अशुभ कर्म ही है और भशुभ कर्म को नष्ट करने का अमोघ उपाय है एक मात्र तप।" यह संकल्प कर तपस्वीजी ने वहाँ से प्रस्थान कर दिया । गाव से उत्तर दिशा मे एक भयानक जंगल से घिरी पहाडी है । यह वन वृक्षों और सघन झाड़ियों से भरी हुई है । दिन में भी हिस्र पशुओं का भय बनाः
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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