SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 749
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'पू० श्रीरोडीदासजी म० संवत् १८२४ में पूज्य हीरजी स्वामी अपनी शिष्य मण्डली के साथ 'दैपुर' पधारे । साधक रोडीदास ने पूज्य मुनिवरों के दर्शन -किये । प्रतिदिन पूज्य महाराज श्री के व्याख्यान श्रवण से रोडीदास जी का मन संसार से विरक हो गया। आपने अभिभावकों की आज्ञा प्राप्त कर सं० १८२४ में बीस वर्ष की अवस्था में स्वामीजी के पास -दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण कर लेने पर आपके जीवन का नया अध्याय प्रारंभ हआ। मेवाड़ के क्षेत्रों में पूज्य गुरुदेव के साथ विचरते हुए आपने अध्ययन प्रारम्भ किया । अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के कारण भापने अल्प समय में ही शास्त्रों का अच्छा अध्ययन किया। ज्ञानाराधना के बाद आप अब कठोर तपस्या करने लगे । शीत परिषह पर विजय पाने के लिए आप भयंकर सर्दी में केवल एक पछेवड़ी ही भोढ़ते थे। उष्ण परिषह सहने के लिये आप जेष्ठमास में प्रखर सूर्य की किरणों से भाग के समान जलती हुई रेती पर अथवा तप्तशिला पर आँखों पर कपड़ा बान्धकर मध्याह के समय लेटे लेटे आतापना लेते थे। घण्टों तक आप इस प्रकार उष्ण रेती पर या शिला पर लेटे रहते । •बहुत देर तक लेटे रहने से जब शरीर का निन्नभाग ठण्डा मालूम होता तो आप शोघ्र करवट बदल लेते और तीन ताप का परिषह सहन करते रहते थे । आपने अपने जीवन काल में अनेक कठोर अभिग्रह किये। कई मास खमण किये । आप का जीवन तपस्यामय बन गया था। आपने कर्मचूर तप भी किया था जिसका विवरण इस प्रकार है:तपनाम तपदिन पारणा कुलदिन वर्ष मास दिन अठाई ३० २४० ३० २७० . ९ . पंचोला १९५ ९७५ १९५ ११७० ३ ३ . चौला २२५ १०२० २२५ १२७५ ३ ६ १५ तेला ३४५ १०३५ ३.५ १३८० ३ १० बेला ६३० १२६० ६३० १८९० ५ ३ -उपवास १५०० १५०० १५०० . س . س س . کی . .
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy