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________________ युगप्रधान आचार्य श्रीधर्मदासजी महाराज जैन परम्परा के समुज्ज्वल इतिहास में सोलहवों से सत्रहवीं शती का विशेष महत्व है । इस युग को विचार क्रांति का स्वर्णयुग कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । श्रीमान् लोकाशाह, भानजीस्वामी, धर्मसिंहजी महाराज, लवजी ऋषिजी तथा धर्मदासजी महाराज आदि आदर्श प्रेरक व्यक्तियों ने इसी समय अपने परिष्कृत विचारों से जैन समाज के मानस को नव जागरण का दिव्य सन्देश दिया। धर्म के मौलिक तत्त्वों के नाम पर जो विकार, असंगतियों और सांप्रदायिक कलहमूलक धारणाएँ पनप रही थीं उनके प्रति तीव्र असंतोष का ज्वार इन्हीं सन्तों की अनुभवमूलक वाणी में फूटा था। स्वाभाविक था कि भाकस्मिक और अप्रत्याशित क्रान्तिपूर्ण विचारधारा के उदय से स्थितिपालक समाज में हलचल उत्पन्न हो गई परिणाम स्वरूप प्रतिक्रियावादी भावनाएँ जागृत हुई । अपने युग में उत्पन्न धार्मिक विकृतियों के प्रति उन सन्तों का विद्रोह जैन संप्रदाय को दूरतक प्रभावित कर एक परिकृत नवमार्ग का निर्माता और पोषक सिद्ध हुआ । इन क्रान्तिकारी महापुरुषों में पूज्य धर्मदासजी महाराज का स्थान प्रमुख रूप से रहा है। इनका जीवन एक अलौकिक जीवन था। यद्यपि इनके जीवन पर प्रकाश डालनेवाली साधन सामग्री तिमिराच्छन्न है तथापि उनकी परम्परा का इतिहास और प्राप्त चर्चापन इस बात के साक्षी हैं कि वे अपने युग के नवनिर्माता व विचार-क्रान्ति के सर्जक तथा शुद्ध संयम की भादर्श मूर्ति थे। आपका जन्म सं. १७०३की आश्विन सुदी एकादशी को अहमदावाद के समीप सरखेज नामक गाव में हुआ था। आपके पिता का नाम जीवनलाल
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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