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________________ आगम के अनमोल .रत्न हूँ परन्तु अपनी बहन का जाना चेलना को सहन न हुआ । बहिन का वियोग न सह सकने के कारण वह उसके साथ चलने को तैयार हो गई । सुज्येष्ठा ने चेलना को कहा-“वहन जरा ठहर, मै अपने गहने लेकर अभी आती हूँ।" परन्तु श्रेणिक को डर था कि कहीं किसी को पता न लग जाय, इसलिये वह जल्दी जल्दी में चेलना को लेकर ही चलता बना । कुछ देर के बाद सुज्येष्ठा आई तो रथ न देखकर सिर पटक कर रोने लगी। जब चेटक को पता चला तो उसके सिपाहियों ने श्रेणिक का पीछा किया। चेटक के सैनिकों ने श्रोणिक के सैनिकों को मार दिया परन्तु श्रेणिक सुरंग में से अपना रथ भगा कर लेगया । इस युद्ध में सुलसा के ३२ पुत्र भी मारे गये जो श्रेणिक के रथी थे। राजगृह पहुँच कर थेणिक ने सुज्येष्टा को आवाज दी 'सुज्येष्ठा' । अन्दर से उत्तर मिला. मै चेलना हूँ। सुज्येष्ठा वहीं रह गई। चेलना का श्रेणिक के साथ विवाह होगया । एक बार श्रेणिक और चेलना महावीर के दर्शनार्थ गये । वहाँ से लौटते हुए उन्हें संभ्या हो गई । माघ का महिना था । चेलना ने मार्ग में ध्यान मुद्रा में अवस्थित कठोर तप करते हुए एक मुनि को देखा। ऐसी भयंकर शीत में उसे तप करते देख चेलना ने आश्चर्य चकित हो मुनि को बार बार वन्दन किया । रानी महल में आकर सोगई । संयोगवश सोते-सोते रानी का हाथ पलंग के नीचे लटक गया और ठंड से अकड़ गया । जब रानी की नींद खुली तो उसके हाथ में असह्य वेदना थी। तुरंत एक अँगीठी मंगाई गई और रानी अपना हाथ सेंकने लगी। इस समय रानी को सहसा उस तपस्वी का स्मरण हो ओया जो भयंकर शीत में जंगल में बैठा तपश्चर्या में लीन था। उसके मुंह से सहसा निकल पड़ा, "उफ. उस वचारे का क्या हाल होगा!" राजा श्रेणिक वहां मौजूद था। उसे सन्देह होगया कि भवश्य कोई बात है, रानी ने किसी पर पुरुष को.
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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