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________________ आगम के अनमोल रत्न दीक्षा लेकर आयंबिल वर्द्धमान तप किया । इसकी विधि इस प्रकार है-एक मायम्बिल के बाद उपवास किया जाता है, दो भायंबिल कर एक उपवास किया जाता है फिर तीन आयंबिल कर एक उपवास किया जाता है । इस तरह एक सौ आयंबिल तक बढ़ाते आना चाहिये । बीच-बीच में एक-एक उपवास किया जाता है । इस तप में आयबिल के पांच हजार पचास दिन होते हैं और उपवास के एक सौ दिन होते हैं। यह तप चौदह वर्ष तीन महिने बीस दिनमें पूर्ण होता है । महासेमकृष्णा भार्या ने इस तप का सूत्रोक्त विवि से आराधन किया तथा अन्य भी बहुत प्रकार का तप किया। कठिन तपस्याओं 'के कारण वह अत्यन्त दुर्वल हो गई तथापि आन्तरिक तप तेज के कारण वह भत्यन्त शोभित होने लगी। इसके बाद एक दिन पिछली रात्रि में चिन्तन किया कि मेरा शरीर तपस्या से कृश हो गया है अतः जबतक मेरे शरीर में उत्थान, बल, बीर्य, पुरुषाकार पराकम है तब तक सलेखना कर लेनी चाहिये। प्रातःकाल होने पर आर्या चन्दनबाला की आज्ञा लेकर (संलेखना की। मरण की वाछा न करती हुई तथा आर्या चन्दनवाला के पास से पढ़े हुए ग्यारह अगों का स्मरण करती हुई धर्म ध्यान में तल्लीन रहने लगी । साठ भक्त अनशन का छेदनकर और एक महिने का संथारा कर केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्तकर मुक्त हुई । इसने १५ वर्ष तक संयम का शुद्ध भाव से पालन किया । चेलना वैशाली के राजा चेटक की सात कन्याएँ थी । प्रभावती, पद्मा. ‘वती, मृगावती, शिवा, ज्येष्ठा, सुज्येष्ठा तथा चेलना । इनमें प्रभावती 'का विवाह वीतिभय के राजा उदायण के साथ, मृगावती का कौशांबी के राजा शतानीक के साथ, शिवा का उज्जैणी के राजा प्रद्योतन के
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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