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________________ "६६८ आगस के अनमोल रत्न को अपने गले लगाया और उन्हें क्षमा कर दिया । जब धनावह लुहारको लेकर वापस लौटा तो उसे भी चन्दना की महानता का पता लगा । चन्दना जैसी महासती को पाकर वह भी अपने जीवन को धन्य धन्य मानने लगा । राजा शतानीक भी भगवान के पारणे की खबर सुनकर अपने अन्तःपुर के साथ वहाँ आया । दधिवाहन के कंचुकी ने वसुमती को पह• "चान लिया, और उसने राजा से कहा--महाराज ! यह दधिवाहन की "पुत्री राजकुमारी वसुमती है । रानी मृगावती को जब यह मालूम हुआ कि वह उसको वहन की पुत्री है तो उसे वडी प्रसन्नता हुई, और उसने चन्दना को गले लगा लिया । महाराज शतानीक बड़े आग्रह से चन्दना को अपने महल ले 'आया । चन्दनबाला अपनी मौसी के घर रहने लगी और दीक्षा की शुभ घड़ी की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ दिनों के बाद वह अवसर उपस्थित हो गया जिसके लिए 'चन्दनवाला प्रतीक्षा कर रही थी। श्रमण भगवान महावीर को केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया । चन्दनबाला को जब यह समाचार मिला तो "उसे अत्यन्त प्रसन्ता हुई । महाराज शतानीक एवं मृगावती की आजा प्राप्त कर वह प्रव्रज्या के लिये चली । भगवान के पास आकर उसने दीक्षा ग्रहण कर ली । भगवान के समवशरण में स्त्रियों में सर्व प्रथम दीक्षा लेनेवाली -चन्दनबाला थी। उसी से साध्दी तीर्थ का प्रारम्भ हुआ था। चन्दना साध्वी संघ की नेत्री बनी। धीरे-धीरे चन्दनबाला के नेतृत्व में अनेक स्त्रियों ने दीक्षा ग्रहण की । अब महासती चन्दना अपने विशाल साध्वी समुदाय का नेतृत्व करती हुई विचरने लगी। एक बार कोशाम्बी नगरी में भगवान महावीर पधारे । चन्दनवाला भी अपने साध्वी परिवार के साथ वहां आई । नगरी के बाहर
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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