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________________ ३६ आगम के अनमोल रत्न दीक्षा लेकर भगवान वन की ओर पधारने लगे तव मरुदेवी माता उन्हें वापिस महल चलने के लिए कहने लगी । जव भगवान वापिस न मुड़े तब वह बड़ी चिन्ता में पड़ गई । अन्त में इन्द्र ने माता मरुदेवी को समझा बुझाकर घर मेजा और भगवान वन की भोर विहार कर गये। ___ इस अवसर्पिणी काल में भगवान सर्वप्रथम मुनि थे। इससे पहले किसी ने भी संयम नहीं लिया था। इस कारण जनता मुनियों के आचार-विचार, दान आदि की विधि से बिलकुल अनभिज्ञ थी। जब भगवान शिक्षा के लिए जाते तब लोग हर्षित होकर वस्त्राभूषण, हाथी, घोड़े आदि लेने के लिए आमंत्रित करते किन्तु शुद्ध और एषणिक आहार-पानी कहीं से भी नहीं मिलता । भूख और प्यास से व्याकुल होकर भगवान के साथ दीक्षा लेने वाले चार हजार मुनि तो अपनी इच्छानुसार प्रवृत्ति करने लग गये । वे कंद मूल फल खा कर अपना जीवननिर्वाह करने लगे। ___कच्छ और महाकच्छ जिनने भगवान ऋषभ के साथ ही में दीक्षा ग्रहण की थी वे भी जङ्गल में फल, फूल, कन्द आदि खाकर जीवननिर्वाह करने लगे। उनके नमि और विनमि नामके दो पुत्र थे । वे प्रभु के दीक्षा लेने से पहले ही उनकी आज्ञा से दूर देश को गये थे। वहाँ से लौटते हुए उन्होंने अपने पिता को वन में देखा । उनको देखकर वे विचारने लगे-ऋषभनाथ जैसे नाथ होने पर भी हमारे पिता अनाथ की तरह इस दशा में क्यों प्राप्त हुए । कहाँ वह राजवैभव और कहाँ यह वनचारी पशुओं सा जीवन ! वे पिता के पास आये और उन्हें प्रणाम कर सब हाल पूछा । तव कच्छ और महाकच्छ ने कहा--भगवान ऋषभदेव ने राजपाट को त्याग भरत आदि को राज्य देकर व्रत ग्रहण किया है। हमने भी प्रभु के साथ व्रत ग्रहण किया था किन्तु भूख, प्यास, शीत, उष्ण आदि परिषहों को सह नहीं सकने के कारण चारित्र से च्युत होकर वनवासी बन गये हैं।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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