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________________ आगम के अनमोल रत्न - कृष्ण से निर्वासित पांचों पाण्डव द्रौपदी के साथ हस्तिनापुर आये। वहाँ इन्होंने अपने माता पिता से कृष्ण के द्वारा निर्वासित करने की बात कही। तब पाण्डुराज ने कुन्तीदेवी से कहा-तुम श्रीकृष्ण के पास जाओ और उन्हें यह कहो कि आपने पाच पाण्डवों को देश निर्वासन की आज्ञा तो दी है, किन्तु आपका समस्त दक्षिणार्ध भरत में राज्य है, अतएव पाण्डव कहाँ जाकर रहें। ___ पति का भादेश पाकर कुन्ती देवी द्वारिका पहुँची । कृष्ण ने अपनी बुमा' का स्वागत किया और आने का कारण पूछा । कुन्तीदेवी ने कहां-पुत्र ! तुमने पांचों पांडवों को देश निकाले का आदेश दिया है और तुम दक्षिणार्धं भरत के स्वामी हो, तो बतलाओ वे किस दिशा -या विदिशा में जाकर रहें। कृष्ण ने कहा-पितृभगिनी ! उत्तम पुरुष अपूति वचन होते हैं वे कहकर बदलते नहीं है इसलिये मेरी निर्वासन की आज्ञा वापस नहीं ली जा सकती है। अतः पांच पाडव दक्षिण दिशा के समुद्र के किनारे पर जाकर वहाँ पाण्डमथुरा नाम को नई नगरी वसावें और मेरे अदृष्ट सेवक होकर रहे। कृष्ण का भादेश पाकर कुन्तीदेवी हस्तिनापुर लौट आई और उसने अपने पति पाण्डुराज को कृष्ण का आदेश सुना दिया । कृष्ण के आदेश पर पांचों पाण्डव दक्षिण दिशा के समुद्रतट पर गये और वहां उन्होंने पाण्डुमथुरा नाम की विशाल नगरी बसाई । वे वहाँ सुख पूर्वक रहने लगे। कालान्तर में द्रौपदी गर्भवती हुई । उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम पाण्डुसेन रखा गया । ' एक वार धर्मघोष नाम के भाचार्य अपने शिष्य परिवार के साथ पाण्डुमथुरा पधारे । उन्हें वन्दना करने के लिए परिषद् निकली !
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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