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________________ आगम के अनमोल रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm नारदजी-मैने द्रौपदी जैसी सुन्दर स्त्री कहीं नहीं देखी है ।उसके सामने तुम्हारा मतापुर नगण्य है । उसके सौंदर्य पर तुम्हारी रानियों का सौंदर्य निछावर किया जा सकता है । वह हस्तिनापुर के महाराजा 'पाण्डवों की महारानी है । उस जैसी सुन्दर स्त्री तुम्हारे अंतःपुर में एक भी नहीं है। नारदजी इतना कह कर चलते बने। पद्मोत्तर ने द्रौपदी को अपने अतः 'पुर में लाने का निश्चय किया किन्तु भरत क्षेत्र से द्रौपदी को उठा लाना उसके सामर्थ्य से बाहर था। दोनों द्वीपों के बीच पड़ा हुआ लवण समुद्र उसकी गति को रोक रहा था फिर प्रकट रूप में द्रौपदी का हरण करना भी उसके लिए सभव नहीं था और अतः उसने देवता की सहायता लेना ही उचित समझा । उसने अपने मित्र देव की आराधना की। देव उसकी आराधना से खुश हुआ। वह सोती हुई द्रौपदी को उठाकर पद्मोत्तर की अशोकवाटिका में ले आया । देव ने इसकी सूचना पद्मोत्तर को दी। 'पद्मोत्तर द्रौपदी को देख कर बड़ा खुश हुआ। दूसरे दिन प्रात. ही द्रौपदी को वैभव के प्रभाव से प्रभावित करने के लिये सुन्दर वस्त्रालंकारों से सज्जित हो अपने विशाल रानियों के परिवार के साथ अशोकवाटिका में पहुंचा और वह द्रौपदी के लागने की राह देखने लगा। द्रौपदी की अव आख खुली तो उसे सब नया ही नया दिख पड़ा । उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ । निर्णय न कर सकी कि मै आग रही हूँ या सपना देख रही हूँ। हड़बड़ाती हालत में द्रौपदी इधर उधर देख ही रही थी कि उसकी दृष्टि पद्मनाभ पर पड़ी । एकदम अपरिचित स्थान में एक अनजान पुरुष को सहसा अपने सामने देखकर वह स्तब्ध सी रह गई। घबराई हुई द्रौपदी को देखकर पद्मनाभ बोग-प्रिये ! घबराओ भत । मेरा नाम पद्मरथ है । मैं यहां का राजा हूँ। तुम्हारे रूप की
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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