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________________ आगम के अनमोल रत्न सुकुमालिका पांच धायमाताओं की देख रेख में द्वितीया के चन्द्र की भाँति बढ़ने लगी । उसने क्रमशः शैशव अवस्था को पारकर यौवन में प्रवेश किया । अब माता पिता को उसके विवाह की चिन्ता होने लगी । उसी नगरी में जिनदत्त नाम का एक धनिक सार्थवाह रहता था उसकी भद्रा नाम की पत्नी और सागर नाम का लड़का था । ६४० एक बार जिनदत्त सागरदत्त के घर के पास से जा रहा था । उस समय सुकुमालिका दासियों के साथ छत पर सुवर्ण की गेंद से क्रीड़ा कर रही थी । जिनदत्त सार्थवाह ने सुकुमालिका को देखा । वह उसके रूप और यौवन पर आश्चर्यचकित हो गया । उसने अपने सेवकों से पूछायह लड़की कौन है ? इस पर सेवकों ने उत्तर दिया- यह सागरदत्त सार्थवाह की पुत्री है और इसका नाम सुकुमालिका है । जिनदत्त घर आया । सुन्दर कपड़े व अलंकार पहन कर अपनी मित्र मंडली के साथ सागरदत्त श्रेष्ठी के घर गया । वहाँ उसने अपने पुत्र सागर के लिये सुकुमालिका की मंगनी की । सागरदत्त ने जिनदत्त से कहा - सुकुमालिका पुत्री हमारी एकलौती सन्तति है वह हमें अत्यन्त प्रिय है । हम उसे एक क्षण के लिये भी आँखों से ओझल नहीं करना चाहते । हां ! आप का पुत्र सागर यदि हमारा घर जमाई वनना स्वीकार करे तो हम अपनी पुत्री का विवाह सागर के साथ करने के लिये राजी हैं । जिनदत्त ने पुत्र की सम्मति से यह बात स्वीकार करली । उसके - बाद शुभ मुहूर्त में जिनदत्त ने अपने पुत्र सागर को सजाया और बरात के साथ बड़ी धूम धाम से सागरदत्त के घर पहुँचा । वहाँ सागरदत्त ने बरात के साथ सागरपुत्र का स्वागत किया । तदनन्तर सागरपुत्र को सुकुमालिका पुत्री के साथ पाट पर विठलाया और चान्दी तथा सोने के कलशों से दोनों को नहलाया गया 1.
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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