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________________ आगम के अनमोल रत्न कोई कह रहा था-"नल ! आओ, शीघ्र बचाओ मैं भाग में जल रहा हूँ। मुझे बचाओ।" नल ने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई, किन्तु दूर से उसे कोई दिखाई नहीं दिया । नल आवाज को लक्ष्य करके चल पड़ा। ज्यों ही वह कुछ आगे बढ़ा तो उसने देखा कि एक झाड़ी में बैठा काला सर्प अपनी रक्षा के लिये पुकार रहा था । झाड़ी के चारों भोर भयंकर आग लग रही थी । सर्प की यह स्थिति देखकर नल का दया हृदय पसीज गया। बिना किसी विलम्ब के नल ने एक बड़ी लकड़ी का सहारा देकर उसे बचा लिया किन्तु दूसरे ही क्षण फुत्कार करते हुए सर्प ने नल को काट लिया । नल उसी समय कूबड़ा और भील की तरह काला हो गया । अपने इस रूप को देखकर सहसा उसके मुँह से निकला-परोपकार का यह बदला ? सांप उसी समय अदृश्य हो गया और उसके स्थान पर एक दिव्य देव प्रकट हुआ । नल यह माया देखकर चकित हो गया । देव बोला-वत्स ! चिन्ता मत कर मैं तेरा पिता निषध हूँ और मरकर देव बना हूँ। मैने यह जो कुछ भी किया है वह तेरी भलाई के लिये ही किया है। पूर्व सचित पाप के उदय से ही तेरी यह अवस्था हुई है । तेरा यह संकट काल वारह वर्ष तक रहेगा ऐसी स्थिति में तेरा,जीवन अधिक दुखी न बने इसलिये मैने तुझे काला और कूवड़ा बना डाला है । मैं तुझे श्रीफल और एक करंडिया देता हूँ जव तुझे अपना असली रूप बनाना हो तब इस श्रीफल से आभूषण और रंडिये से वस्त्र निकालकर पहन लेना । जिससे तू असली नल बन जावेगा । बारह वर्ष के बाद तू पुनः अयोध्या का राजा बनेगा और दमयन्ती भी तुझे मिल जायगी । इतना कहने के बाद देव ने नल को वहाँ से उठाया और सुंसुमारपुर के समीप लाकर छोड़ दिया। नल ने परोपकारी पितृदेव निषध को प्रणाम किया । देव पुत्र बल को मंगलकारी आशिर्वाद दे अदृश्य हो गया । ___ कुन्ज ल सुसुमारपुर की ओर चल पड़ा। नगर के समीप पहुँचा तो वहां हाहाकार मचा हुआ था। लोग अपने प्राण बचाने के लिये इधर उधर
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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