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________________ ५९४ आगम के अनमोल रत्न ww उस नगर धन्य नाम का सार्थवाह रहता था । वह समृद्धिशाली था । तेजस्वी था और उसके घर बहुतसा भोजन तैयार होता था । उसकी भद्रा नाम की पत्नी थी । उसके अंग उपाङ्ग अत्यन्त सुन्दर थे । उसका मुख चन्द्रमा के समान सौम्य था । देखने में वह बड़ी आकर्षक लगती थी । अतुल धन सम्पत्ति होते हुए भी उसके कोई सन्तान न थी, जिससे वह अत्यन्त दुःखी थी । उस धन्यसार्थवाह का पंथक नामक दास चेटक ( दासी पुत्र ) था। वह सर्वाङ्ग - सुन्दर था । शरीर से पुष्ट था और बालकों को खिलाने में कुशल था । वह धन्यसार्थवाह राजगृह नगर का मान्य श्रेष्ठी था तथा अठारह श्रेणियों (जातियों) और प्रश्रेणियों (उपजातियों) का सलाह. कार था । इस नगर में विजय नाम का चोर था । वह अत्यन्त क्रूर था । क्रूरता के कारण उसकी आंखें सदा लाल रहती थीं। उसका चेहरा बड़ा बीभत्स लगता था । उसके दिल में अनुकम्पा के लिये कोई स्थान नहीं था । वह जुआ, शराब, परस्त्री, एवं जीवहिंसा भादि दुर्व्यसनों में सदा रचा पचा रहता था। वह दिन में छिपा रहता था और रात्रि में चोरी करता था । वह चोरी करने में अत्यन्त कुशल था । घोर और जघन्य कृत्य करने वाला निष्ठुर हृदय वह चोर अनेक अत्याचार और अनर्थ करने में जरा भी संकोच नहीं करता था । वह सर्प के समान वक्रदृष्टि वाला और द्रव्य हरण में तलवार की धार के समान तेज था । वह राजगृह के अनेक गुप्त मार्गों को जानता था । टूटे फूटे मकान पर्वत की गुफाएँ व सघन वन उसके निवास स्थान थे । एक रात्रि में धन्ना सार्थवाह की पत्नी भद्रा के मन में विचारआय - "वह माता धन्य है जिसकी गोद में सुन्दर बालक किलकारी करता है, क्रीड़ा करता है और अपने निर्विकार बाल सुलभ हाव भाव से
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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