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________________ आगम के अनमोल रत्न wwwwwwwwww -देह मुनियों की सेवा में अर्पण करता हूँ। आप मुझे पुनः दीक्षित करें। भगवान ने वैसा ही किया। उसने स्थविरों के पास अंगसूत्रों का अध्ययन किया और भगवान की आज्ञा प्राप्त कर गुणरत्न संवत्सर एवं बारह भिक्षु प्रतिमा आदि कठोर तप किये। विभिन्न तपश्चर्याओं के कारण मेघकुमार का शरीर अत्यन्त क्षीण बन गया यहाँ तक कि चलने फिरने की शक्ति भी नहीं रही। एक दिन रात्रि में धर्म जागरण करते हुए उसने यावज्जीवन का अनशन करने का निश्चय किया। प्रातः भगवान की आज्ञा प्राप्त कर मेघमुनि स्थविर मुनियों के साथ शनैः शनै. विपुलाचल पर चढ़े। वहाँ एक बड़े शिलापट्ट की प्रतिलेखनाकर उस पर अपना देह रख दिया । 'पुनः पंचमहानत स्वीकार कर उसने पादोपगमन संथारा कर लिया । 'एक मास तक मेघ कुमार का अनशन चला अन्त में शुद्ध भावना से मेघ कुमार ने अपना देहोत्सर्ग किया । मरकर वे विजय नामक अनुत्तर विमान में उत्कृष्ट ऋद्धिधारक देव बने। मेघकुमार ने बारह वर्ष तक संयम का पालन किया । देवलोक से च्युत होकर मेघकुमार महा विदेह में उच्चकुल में जन्म लेंगे और वहाँ चारित्र ग्रहण कर मोक्ष प्राप्त करेंगे। धन्यसार्थवाह चम्पा नाम की नगरी थी। उसके बाहर पूर्णभद्र नाम का उद्यान था। वहीं जिशतन्त्रु नाम का राजा राज्य करता था । उस नगरी में धन्य नाम का एक समृद्ध श्रेष्ठी रहता था । एक बार उसने व्यापारार्थ अहिच्छत्रा जाने का विचार किया । उसके लिये उसने नगर में यह घोषणा करवाई कि धन्य सार्थवाह व्यापारार्थ अहिच्छत्रा :जा रहा है । जिस किसी को व्यापारार्थ अहि. छत्रा चलना हो वे चले । उन्हें सब प्रकार की सहायता दी जावेगी। उनका मार्ग में चोर लुटेरों से संरक्षण किया जावेगा तथा व्यापार के लिये धन के इच्छुक को धन भी दिया जायगा। उनके वस्त्र
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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